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ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन: द्रव्यविशेषप्रज्ञापन अधिकार
सकता है; क्योंकि मूर्त की परिभाषा तो इन्द्रियों से ग्राह्य बताई गई है। अथ मूर्तस्य पुद्गलद्रव्यस्य गुणान् गृणाति -
वण्णरसगंधफासा विज्जंते पुग्गलस्स सुहुमादो । पुढवीपरियंतस्स य सद्दो सो पोग्गलो चित्तो ।। १३२ ।। वर्णरसगंधस्पर्शा विद्यन्ते पुद्गलस्य सूक्ष्मात् ।
पृथिवीपर्यन्तस्य च शब्दः स पुद्गलश्चित्र: ।। १३२।।
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आचार्य प्रभाचन्द प्रवचनसार की सरोज भास्कर टीका में इस प्रश्न का उत्तर देते हुए लिखते हैं कि इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण होने की योग्यतारूप शक्ति की प्रगटता की अपेक्षा सूक्ष्म परमाणु भी इन्द्रियग्राह्य माने गये हैं ।
इसप्रकार उक्त दोनों गाथाओं में यह स्पष्ट किया गया है कि जिन लिंगों (चिह्नों) से द्रव्यों को पहिचाना जाता है; उन्हें गुण कहते हैं ।
यद्यपि ये गुण अपने आश्रयभूत द्रव्य के साथ तन्मय हैं; तथापि उनमें परस्पर अतद्भाव है। जिन वस्तुओं के प्रदेश भिन्न-भिन्न होते हैं, उनमें अत्यन्ताभाव और जिनके प्रदेश अभिन्न होते हैं, उनमें अतद्भाव होता है। यह बात द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार में विस्तार से स्पष्ट की जा चुकी है । यहाँ तो यह कह रहे हैं कि मूर्त द्रव्यों के सभी गुण मूर्त और अमूर्त द्रव्यों के सभी गुण अमूर्त होते हैं और जो इन्द्रियों के माध्यम से जाने जाते हैं, वे मूर्त हैं और जो इन्द्रियों से नहीं जाने जाते, वे अमूर्त हैं ।। १३०-१३१ ।।
ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार के अन्तर्गत समागत द्रव्यविशेषप्रज्ञापन अधिकार में अब तक छह द्रव्यों को जीव-अजीव, लोक- अलोक, सक्रिय-निष्क्रिय और मूर्त-अमूर्त द्रव्यों के रूप में प्रस्तुत करने के उपरान्त अब आगामी तीन गाथाओं में सभी द्रव्यों के उन गुणों को बताते हैं, जिनसे वे पहिचाने जाते हैं। सबसे पहले १३२वीं गाथा में मूर्तपुद्गलद्रव्य के गुणों को बताते हैं। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है.
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( हरिगीत )
सूक्ष्म से पृथ्वी तलक सब पुद्गलों में जो रहें ।
स्पर्श रस गंध वर्ण गुण अर शब्द सब पर्याय हैं ।। १३२ ।।
सूक्ष्म पुद्गलों से पृथ्वीपर्यन्त स्थूल पुद्गलों में वर्ण, रस, गंध और स्पर्श गुण होते हैं