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ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार
२१५ और शाखाओंसे आलम्बित दिखाई देता है; इसीप्रकार समुदायीद्रव्य पर्यायों के समुदायस्वरूप होने से पर्यायों के द्वारा अवलम्बित भासित होता है। ___ तात्पर्य यह है कि जिसप्रकार स्कन्ध, मूल और शाखायें वृक्षाश्रित ही हैं; उसीप्रकार पर्यायें द्रव्याश्रित ही हैं; द्रव्य से भिन्न पदार्थरूप नहीं हैं।
पर्यायें उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य द्वारा अवलंबित हैं अर्थात् उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य पर्यायाश्रित हैं; क्योंकि उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य बीज, अंकुर और वृक्षत्व की भाँति अंशों के धर्म हैं, अंशी कै नहीं। जिसप्रकार अंशी वृक्ष के बीज, अंकुर और वृक्षत्वरूप तीन अंश व्यय-उत्पादध्रौव्यरूप निजधर्मों से आलंबित एकसाथ ही दिखाई देते हैं; उसीप्रकार अंशी-द्रव्य के नष्ट होता हुआ भाव, उत्पन्न होता हुआ भाव और अवस्थित रहनेवाला भाव - ये तीनों अंश व्यय-उत्पाद-ध्रौव्य स्वरूप निज धर्मों के द्वारा आलंबित एकसाथ ही दिखाई देते हैं; किन्तु यदिभंग, उत्पाद और ध्रौव्य कोद्रव्य काही माना जाय तो सब कुछ प्रलय को प्राप्त होगा।
यदि पुनर्भङ्गोत्पादध्रौव्याणि द्रव्यस्यैवेष्यन्ते तथा समग्रमेव विप्लवते। तथाहि भंगे तावत् क्षणभङ्गकटाक्षितानामेकक्षण एव सर्वद्रव्याणां संहरणाद्रव्यशून्यतावतारः सदुच्छेदो वा । उत्पादे तु प्रतिसमयोत्पादमुद्रितानां प्रत्येकं द्रव्याणामानन्त्यमसदुत्पादो वा। ध्रौव्ये तु क्रमभुवां भावानामभावाद्रव्यस्याभाव: क्षणिकत्वं वा।
अत उत्पादव्ययध्रौव्यैरालम्ब्यन्तांपर्याया: पर्यायैश्च द्रव्यमालब्यतां, येन समस्तमप्येतदेकमेव द्रव्यं भवति ।।१०१।।
यदि द्रव्य का ही भंग माना जाय तो क्षणभंग से लक्षित समस्त द्रव्यों का एक क्षण में ही संहार हो जाने से द्रव्यशून्यता आ जायेगी अथवा सत् का उच्छेद हो जायेगा। यदि द्रव्य काही उत्पाद माना जाय तोसमय-समय पर होनेवाले उत्पाद के द्वारा चिन्हित द्रव्यों को प्रत्येक को अनंतता आ जायेगी। यदि द्रव्य का ही ध्रौव्यत्व माना जाय तो क्रमश: होनेवाले भावों के अभाव के कारण द्रव्य का अभाव हो जायेगा अथवा क्षणिकपना होगा।
इसलिए यही ठीक है कि उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य पर्यायों के आश्रय से हैं और पर्यायें द्रव्य के आश्रय से हैं; इसलिए ये सब द्रव्य ही हैं, द्रव्यान्तर नहीं।" __तत्त्वप्रदीपिका टीका के भाव को पण्डित हेमराजजी द्वारा भावार्थ के रूप में इसप्रकार व्यवस्थित किया गया है -
"बीज, अंकुर और वृक्षत्व - ये वृक्ष के अंश हैं। बीज का नाश, अंकुर का उत्पाद और वृक्षत्व का ध्रौव्य - तीनों एकसाथ ही होते हैं। इसप्रकार नाश बीज के आश्रित है, उत्पाद