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ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार निरवधि त्रिकाली होने से उत्पन्न ही नहीं होते।
द्रव्य जिसप्रकार स्वभाव से सिद्ध है; उसीप्रकार वह स्वभाव से हीसत्भीहै; क्योंकि वह अपने सत्तास्वरूप स्वभाव से निष्पन्न है-ऐसा निश्चित करना चाहिए। जिसके समवाय से द्रव्य सत् हो - ऐसी अन्य द्रव्यरूप कोई सत्ता नहीं है।
अब इसी बात को विशेष स्पष्ट करते हैं -
पहली बात तो यह है कि डंडा और डंडी (डंडेवाला पुरुष) में जिसप्रकार की युतसिद्धता (दो पदार्थों का जुड़ना) पाई जाती है; उसप्रकार की युतसिद्धता सत् द्रव्य और सत्ता गुण में नहीं पाई जाती; इसलिए सत्ता और द्रव्य में अर्थान्तरत्व नहीं है। दूसरे सत्ता और द्रव्य में अयुतसिद्धता से भी अर्थान्तरत्व नहीं बनता। ___ भेदनिबन्धनेति चेत् को नाम भेदः । प्रादेशिक अताद्भाविको वा । न तावत्प्रादेशिकः, पूर्वमेव युतसिद्धत्वस्यापसारणात् । अताद्भाविकश्चत उपपन्न एव यद्रव्यं तन्न गुण इति वचनात् । अयं तु न खल्वेकान्तेनेहेदमितिप्रतीतेर्निबन्धनं, स्वयमेवोन्मग्ननिमग्नत्वात् ।
तथाहि - यदैव पर्यायेणार्फाते द्रव्यं तदैव गुणवदिदं द्रव्यमयमस्य गुणः, शुभ्रमिदमुत्तरीयमयमस्य शुभ्रो गुण इत्यादिवदताद्भाविको भेद उन्मजति । यदा तु द्रव्येणार्प्यते द्रव्यं तदास्तमितसमस्तगुणवासनोन्मेषस्य तथाविधं द्रव्यमेव शुभ्रमुत्तरीयमित्यादिवत्प्रपश्यत: समूल एवाताद्भाविको भेदो निमजति । एवं हि भेदे निमजति तत्प्रत्यया प्रतीतिर्निमज्जति । तस्यां निमज्जत्यामयुतसिद्धत्वोत्थमर्थान्तरत्वं निमज्जति । तत: समस्तमपि द्रव्यमेवैकं भूत्वावतिष्ठते।
यदा तुभेद उन्मजति, तस्मिन्नुन्मजति तत्प्रत्यया प्रतीतिरुन्मजति । तस्यामुन्मजत्यामयुत
'इसमें यह है' अर्थात् 'द्रव्य में सत्ता है' - ऐसी प्रतीति के कारण अर्थान्तरत्व बन जायेगा - यदि कोई यह कहे तो उससे पूछते हैं कि इसमें यह है' - ऐसी प्रतीति किसके आश्रय से होती है ? यदि ऐसा कहा जाय कि भेद के आश्रय से होती है अर्थात् द्रव्य और सत्ता में भेद है, इसकारण होती है। वह कौनसा भेद है - प्रादेशिक या अताद्भाविक ?
प्रादेशिक भेद तो है नहीं; क्योंकि युतसिद्धत्व पहले ही निरस्त कर दिया गया है। प्रदेशभेद तो युतसिद्धों में ही होता है।
यदि अताद्भाविक भेद कहा जाय तो ठीक ही है; क्योंकि ऐसा तो शास्त्र का भी वचन है। शास्त्रों में भी कहा है कि जोद्रव्य है, वह गुण नहीं है; परन्तु यह अताद्भाविक भेदएकान्त से इसमें यह है' - ऐसी प्रतीति का कारण नहीं है क्योंकि वह अताद्भाविक भेद स्वयं ही