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ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन
शुभ है, जीव ही अशुभ है और जीव ही शुद्ध है- ऐसा निश्चित करते हैं।
जीव: परिणमति यदा शुभेनाशुभेन वा शुभोऽशुभः।
शुद्धेन तदा शुद्धो भवति हि परिणामस्वभावः ।।९।। यदाऽयमात्मा शुभेनाशुभेन वारागभावेन परिणमति तदा जपातापिच्छरागपरिणतस्फटिकवत् परिणामस्वभावः सन् शुभोऽशुभश्च भवति।
यदा पुनः शुद्धनारागभावेन परिणमति तदा शुद्धारागपरिणतस्फटिकवत्परिणामस्वभाव: सन् शुद्धो भवतीति सिद्ध जीवस्य शुभाशुभशुद्धत्वम् । गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है -
(हरिगीत ) स्वभाव से परिणाममय जिय अशुभ परिणत हो अशुभ।
शुभभाव परिणत शुभ तथा शुधभाव परिणत शुद्ध है।।९।। जीव परिणामस्वभावी होने से जब वह शुभ या अशुभभावरूप परिणमित होता है, तब स्वयं भी शुभ या अशुभ होता है और जब शुद्धभावरूप परिणमित होता है, तब शुद्ध होता है।
उक्त गाथा का भाव तत्त्वप्रदीपिका टीका में इसप्रकार स्पष्ट करते हैं -
"जिसप्रकार लाल जपाकुसुम और काले तमालपुष्प के संयोग से स्फटिकमणि उनके रंगरूपपरिणमित होता देखाजाताहै; उसीप्रकार यह भगवान आत्माजबशुभ या अशुभावरूप परिणमित होता है; तब परिणामस्वभावी होने से स्वयं ही शुभ या अशुभरूप होता है और जब यह भगवान आत्मा शुद्धभाव अर्थात् अरागभाव से परिणमित होता है; तब शुद्ध अराग (रंगरहित) परिणमित स्फटिक की भांति परिणामस्वभावी होने से स्वयं ही शुद्ध होता है।
इसप्रकार जीव का शुभत्व, अशुभत्व और शुद्धत्व सिद्ध होता है।"
जपापुष्प लाल होता है और तमाल पुष्प काला होता है। ध्यान रहे यहाँ लाल पुष्प को पुण्य का और काले पुष्प को पाप का प्रतीक मानकर बात की है।
इसप्रकार हम देखते हैं कि इस गाथा में यही बताया गया है कि द्रव्य और पर्याय अभिन्न ही हैं; क्योंकि द्रव्य और पर्याय में क्षणिकतादात्म्य संबंध है। द्रव्य और पर्याय में तादात्म्य संबंध होने से यहाँ प्रतिपादित द्रव्य और पर्याय की अभिन्नता की बात निश्चयनय का कथन है। यह कथन तो व्यवहार का है - ऐसा कहकर उक्त कथन की उपेक्षा करना उचित नहीं है।
विशेष ध्यान रखने की बात यह है कि यहाँ जिस आत्मा की बात चल रही है; वह आत्मा