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ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन : शुभपरिणामाधिकार
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अभेद होने से अर्थ हैं।
उनमें जोगुणों और पर्यायों को प्राप्त करते हैं या गुणों और पर्यायों द्वारा प्राप्त किये जाते हैं; वे अर्थ द्रव्य हैं; जो द्रव्यों को आश्रय के रूप में प्राप्त करते हैं या आश्रयभूत द्रव्यों के द्वारा प्राप्त किये जाते हैं, वे अर्थ गुण हैं और जो द्रव्यों को क्रमपरिणाम से प्राप्त करते हैं या द्रव्यों के द्वारा क्रमपरिणाम से प्राप्त किये जाते हैं. वे अर्थ पर्याय हैं। ___जिसप्रकार सोनारूप द्रव्य पीलेपन आदि गुणों और कुण्डलादि पर्यायों को प्राप्त करता है अथवा उनके द्वारा प्राप्त किया जाता है; इसलिए सोना द्रव्य अर्थ है। ___ यथा हि सुवर्णं पीततादीन् गुणान् कुण्डलादींश्च पर्यायानियर्ति तैरर्यमाणं वा अर्थो द्रव्यस्थानीयं, यथा च सुवर्णमाश्रयत्वेनेयतितेनाश्रयभूतेनार्यमाणा वा अर्थाः पीततादयो गुणाः, यथा च सुवर्णं क्रमपरिणामेनेयति तेन क्रमपरिणामेनार्यमाणा वा अर्थाः कुण्डलादयः पर्यायाः। एवमन्यत्रापि। __यथा चैतेषु सुवर्णपीततादिगुणकुण्डलादिपर्यायेषु पीततादिगुणकुण्डलादिपर्यायाणां सुवर्णादपृथग्भावात्सुवर्णमेवात्मा तथा च तेषु द्रव्यगुणपर्यायेषु गुणपर्यायाणां द्रव्यादपृथग्भावाद्रव्यमेवात्मा ॥८७॥
जिसप्रकार पीलापन आदि गुण सोने को आश्रय के रूप में प्राप्त करते हैं अथवा सोने द्वारा प्राप्त किये जाते हैं; इसलिए पीलापन आदि गुण अर्थ हैं।
जिसप्रकार कण्डलादि पर्यायें सोने को क्रमपरिणाम से प्राप्त करती हैं अथवा सोने द्वारा क्रमपरिणाम से प्राप्त की जाती हैं; इसलिए कुण्डलादि पर्यायें अर्थ हैं।
इसीप्रकार अन्यत्र सभी जगह घटित कर लेना चाहिए।
जिसप्रकार पीलापन अदि गुण और कुण्डलादि पर्यायों की सोने से अभिन्नता होने से उनका सोना ही आत्मा (सर्वस्व) है; उसीप्रकार उन द्रव्य-गुण-पर्यायों में गुण-पर्यायों से अभिन्नता होने से उनकाद्रव्य ही आत्मा(सर्वस्व-स्वरूप) है।"
इसप्रकार इस गाथा में द्रव्य-गुण-पर्याय का सामान्य स्वरूप बताते हुए मात्र इतना ही कहा गया है कि द्रव्य, गुण और पर्याय - इन तीनों को अर्थ कहते हैं।
द्रव्य को भी अर्थ कहते हैं; गुण को भी अर्थ कहते हैं और पर्यायों को भी अर्थ कहते हैं।
ध्यान रहे द्रव्य, गुण और पर्याय - इन तीनों को मिलाकर भी अर्थ कहते हैं और तीनों को पृथक्-पृथक् भी अर्थ कहते हैं।
द्रव्य, गुण और पर्याय - इन तीनों में कथंचित् भेदाभेद है। तात्पर्य यह है किये तीनों प्रदेशों