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________________ १६२ प्रवचनसार आत्मानुभव करना चाहिए । दर्शनमोह के नाश करने का एकमात्र यही उपाय है। ध्यान रहे यहाँ मोह के नाश के लिए स्वाध्याय के अतिरिक्त और किसी भी क्रियाकाण्ड या शुभभावको उपाय के रूप में नहीं बताया है। अत: आत्मकल्याण की भावना से मोह (मिथ्यात्व) का नाश करने के लिए धर्म के नाम पर चलनेवाले अन्य क्रियाकलापों से थोड़ा-बहुत विराम लेकर पूरी शक्ति और सच्चे मनसे स्वाध्याय में लगना चाहिए; अन्यथा यह मनुष्यभव यों ही चला जायेगा, कुछ भी हाथ नहीं आयेगा ।।८६।। विगत गाथा में यह बताया गया है कि अरहंत भगवान को द्रव्य-गुण-पर्याय से जानने के अथ कथं जैनेन्द्रे शब्दब्रह्मणि किलार्थानां व्यवस्थितिरिति वितर्कयति दव्वाणि गुणा तेसिं पज्जाया अट्ठसण्णया भणिया। तेसु गुणपज्जयाणं अप्पा दव्व त्ति उवदेसो।।८७।। द्रव्याणि गुणास्तेषां पर्याया अर्थसंज्ञया भणिताः। तेषु गुणपर्यायाणामात्मा द्रव्यमित्युपदेशः ।।८७।। द्रव्याणि च गुणाश्च पर्यायाश्च अभिधेयभेदेऽप्यभिधानाभेदेन अर्थाः । तत्र गुणपर्यायानियति गुणपर्यायैरर्यन्त इति वा अर्था द्रव्याणि, द्रव्याण्याश्रयत्वेनेयति द्रव्यैराश्रयभूतैरर्यन्त इति वा अर्था गुणाः, द्रव्याणि क्रमपरिणामेनेयति द्रव्यैः क्रमपरिणामेनार्यन्त इति वा अर्था: पर्यायाः। लिए जिनेन्द्रकथित शास्त्रों का स्वाध्याय करना चाहिए। अब इस गाथा में यह बता रहे हैं कि जिनेन्द्र भगवान के कहे अनुसार द्रव्य-गुण-पर्याय का सामान्य स्वरूप क्या है ? ध्यान रहे यहाँ मात्र एक गाथा में ही द्रव्य-गण-पर्याय का स्वरूप बता रहे हैं: आगे ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार में इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डालेंगे। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है - ( हरिगीत ) द्रव्य-गुण-पर्याय ही हैं अर्थ सब जिनवर कहें। जिय द्रव्य गुण-पर्यायमय ही भिन्न वस्तु है नहीं।।८७|| द्रव्य, गुण और पर्यायें अर्थ नाम से कही गई हैं। उनमें गुण और पर्यायों का आत्मा द्रव्य है; इसप्रकार जिनेन्द्र भगवान का उपदेश है। इस गाथा का भाव आचार्य अमृतचन्द्र तत्त्वप्रदीपिका टीका में इसप्रकार व्यक्त करते हैं - “द्रव्य, गुण और पर्यायें अभिधेय (वाच्य) काभेद होने पर भी अभिधान (वाचक) का
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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