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ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन : शुभपरिणामाधिकार
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सर्वज्ञकथित होने से पूर्णत: अबाधित आगमज्ञान को प्राप्त करके उसी में क्रीड़ा करने से प्राप्त संस्कार से विशिष्ट संवेदनशक्तिरूप संपदा प्रगट करने पर सहृदयजनों के हृदय को आनन्द से स्फुरायमान करनेवाले प्रत्यक्षप्रमाण से अथवा उससे अविरुद्ध अन्य प्रमाणसमूह से समस्त वस्तुसमूह को यथार्थरूप से जानने पर विपरीताभिनिवेश के संस्कार करनेवाला मोहोपचय अवश्य क्षय को प्राप्त होता है।
इसलिए भावज्ञान के अवलम्बन के द्वारा दृढ़कृत परिणाम से द्रव्यश्रुत का अभ्यास करना प्राथमिक भूमिकावाले लोगों को मोहक्षय करने के लिए उपायान्तर है।"
यद्यपि आचार्य जयसेन ने तात्पर्यवृत्ति टीका में इस गाथा के भाव को तत्त्वप्रदीपिका के अनुसार ही स्पष्ट किया है; तथापि वे उक्त गाथा का तात्पर्य इसप्रकार प्रस्तुत करते हैं___“कोई भव्यजीव सर्वप्रथम तोवीतरागी-सर्वज्ञदेव द्वारा प्रतिपादित शास्त्रों द्वारा श्रुतज्ञान से आत्मा को जानता है और उसके बाद विशिष्ट अभ्यास के वश से परमसमाधि के समय रागादि विकल्पों से रहित मानसप्रत्यक्ष से उसी आत्मा को जानता है अथवा उसीप्रकार अनुमान से जानता है। जिसप्रकार सुखादि के समान विकाररहित स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से यह जाना जाता है कि शरीर में ही एक शुद्ध-बुद्ध परमात्मा है; उसीप्रकार यथासंभव आगमअभ्यास से उत्पन्न प्रत्यक्ष अथवा अनुमान से अन्य पदार्थ भी जाने जाते हैं।
इसलिए मोक्षार्थी भव्यों को आगम का अभ्यास अवश्य करना चाहिए।"
उक्त कथन में आचार्य जयसेन ने मोह के क्षय के कारणरूप में होनेवाले क्रमिक विकास की प्रक्रिया को भी स्पष्ट कर दिया है।
८०वीं गाथा में अरहंत भगवान को द्रव्य-गुण-पर्याय से जानने की बात कही गई है। अत: अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि अरहंत भगवान के द्रव्य-गुण-पर्यायों को कैसे जाने?
इसके उत्तर में इस गाथा में यह बताया गया है कि अरहंत भगवान के द्रव्य-गुण-पर्याय को जानने के लिए आगम का स्वाध्याय करना चाहिए । स्वाध्याय में अरहंत भगवान की दिव्यध्वनि का श्रवण, उसके अनुसार लिखे गये शास्त्रों का पठन-पाठन एवं उनके मर्म को जाननेवाले तत्त्वज्ञानी गुरुओं के उपदेश का श्रवण - ये सबकुछ आ जाता है।
उक्त सम्पूर्ण कथन से यही प्रतिफलित होता है कि देशनालब्धि के माध्यम से अरहंत भगवान को द्रव्यत्व, गुणत्व और पर्यायत्व से जानकर, तर्क की कसौटी पर कसकर निर्णय करना चाहिए । तदुपरान्त उन्हीं के समान अपने आत्मा को भी प्रत्यक्षादि प्रमाणों से जानकर