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पश्चात्ताप
एक समीक्षात्मक अध्ययन
कवि ने यह भी अहसास दिलाने की कोशिश की है कि पुरुष की अपेक्षा नारी में प्रेम, करुणा, धैर्य आदि भावनाएँ अधिक विशद रूप में होती हैं। वह अपने प्रति अत्याचारी प्रेमपात्र को भी क्षमा कर देती है। सीता ने भी राम के अपराध को कर्मोदय के खाते में रखकर 'क्लीन चिट' दे दी। यह सीता की महानता थी। शिल्पीय संरचना -
"सृजन के क्षण अलौकिक होते हैं, मात्र अनुभव की सम्पदा होते हैं; इनको तब तक व्यक्त होने की अपेक्षा नहीं होती है, जब तक कि वे गहरे और व्यापक होकर एक निश्चय से युक्त नहीं हो जाते हैं। ये सर्जक के भीतर तपते-रचते अचानक बाहर आने को मचलने लगते हैं और सर्जक अनुभव लोक से अभिव्यक्ति के द्वार पर आकर दस्तक देने लगता है। अनुभव जितना गहरा और भारी होता है, अभिव्यक्ति उतनी ही सशक्त-ईमानदार और विश्वसनीय होती है।"
डॉ. हरिचरण शर्मा के इस कथन के आलोक में यदि ‘पश्चात्ताप' की शिल्पीय संरचना के अंतःसूत्र खोजने का प्रयास करें तो पाएँगे कि कवि ने राम को अपनी संवेदनाओं का वाहक भर बनाया है, संवेदनाएँ स्वयं कवि की हैं और उन्हीं को व्यक्त करना कवि का उद्देश्य है।
इसलिए कृति का आचमन करते समय पाठक यदि किसी शैल्पिक चमत्कार की अपेक्षा करेगा तो अंततः निराश ही होगा: क्योंकि यहाँ अभिव्यक्ति नहीं, अनुभूति मुख्य है; शिल्प नहीं, अपितु संवेदना मुख्य है।
ध्यातव्य है कि मैं यहाँ शिल्प की गौणता की बात कर रहा हूँ, अभाव की नहीं। यहाँ वह शैल्पिक कीमियागारी नहीं है, जो पाठक को चमत्कृत कर दे; क्योंकि शिल्प कवि के लिए साधन है, साध्य नहीं। फिर भी उनका अभिव्यंजना कौशल उनकी अनुभूति के संप्रेषण में पूरा सफल रहा है। अभिव्यंजना शिल्प में सबसे पहले भाषा की बात करते हैं।
भाषा, अभिव्यक्ति का ऐसा माध्यम है, जो अनुभूत सत्य को शाब्दिक आकार देता है। यह माध्यम यदि सशक्त हो तो अनुभूति की अभिव्यक्ति
पूरी और सही होती है। कवि इस तथ्य को जानते हैं; इसलिए शब्द के । भीतर छिपे हर अर्थ को उकेरने का प्रयास करते हैं।
कवि की भाषा सरलता, चित्रोपमता. स्पष्टता. वातावरण की अनुकूलता, अकृत्रिमता, भावानुकूलता आदि गुणों से युक्त है।
यद्यपि कवि ने पौराणिक आख्यान का आश्रय लेकर काव्य रचना की है, अतः तदनुरूप तत्सम शब्दावली बाहुल्य के साथ प्रयोग की है; किन्तु भाषा की संस्कृत निष्ठता होते हुए भी जिन शब्दों का प्रयोग किया है, वे खड़ी बोली के सामान्य व्यवहार में बहु प्रयुक्त हैं; इसलिए कठिनाई का आभास नहीं देते हैं। साथ ही भाषा की सरलता बनाए रखने के लिए आवश्यकतानुसार तद्भव, देशज और विदेशी शब्दों का भी प्रयोग किया है। तत्सम शब्दावली के सुन्दर गुम्फन की दृष्टि से इस छन्द को देखें
आप न करें विकल्प विशेष,
सभी कुछ निश्चित हैं संयोग। बात बस इतनी ही है नाथ!,
मिला देते सत् का संयोग ।।२३।। इसीप्रकार तद्भव शब्दावली का प्रयोग इस छन्द में किया है - कहा इतना ही सीता ने,
नहीं अपराध तुम्हारा है। करम फल पूरब का जानो,
करमबल सबसे न्यारा है ।।१९।। करमबल, पूरब, न्यास, सबसे, मुखड़ा, नाता, जोड़ा, परख, जाँच आदि शब्द भाषा की सरलता में वृद्धि करते हैं; इसीप्रकार अरबी-फारसी के बहु प्रचलित शब्द, जो खड़ी बोली का हिस्सा हैं, प्रयुक्त किए हैं, जैसे - रग, यकीन, जहान, नजीर आदि।
यद्यपि कवि ने सरलता का आद्यंत ध्यान रखा है, पर जहाँ सामासिक या संधिज शब्दों का प्रयोग किया है या नवीनता के व्यामोह में अप्रचलित ,