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पश्चात्ताप
मनीषियों की दृष्टि में
मनीषियों की दृष्टि में -
मार्मिक चित्रण पौराणिक कथानक के आधार पर लिखा गया पश्चात्ताप नामक काव्य डॉ. भारिल्ल की एक ऐसी अनुपम कृति है कि जिसमें सबल युक्तियों के साथ-साथ सरल सुबोध भाषा-शैली में श्रीराम के संवेदनशील हृदय का प्रस्फुटन हुआ है। ___ अपने परिवार की कीमत पर देश और समाज के लिए अपने जीवन को समर्पित कर देने वाले श्रीराम इस कृति में संवेदनशील पति के रूप में प्रस्तुत हुए हैं।
भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही दृष्टियों से कृति सशक्त बन पड़ी है। इसमें व्यक्त विचार मानवीय पक्ष को उजागर करते हैं। पौराणिक युग की नारी की स्थिति का मार्मिक चित्रण और नारी की महानता पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।
सहृदय हृदय को आन्दोलित कर देने वाली यह कृति साहित्य जगत में निश्चित ही अपना स्थान बनाएगी।
- पाश्री महामहोपाध्याय डॉ. सत्यव्रत शास्त्री. दिल्ली पूर्व कुलपति, श्री जगन्नाथ संस्कृत विश्वविद्यालय, पुरी (उड़ीसा)
अत्यन्त सराहनीय ___ डॉ. भारिल्ल द्वारा रचित पश्चात्ताप काव्य एक ऐसी कृति है, जो श्रीराम के संवेदनशील हृदय को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः समर्थ है। इस कति के माध्यम से लेखक ने राम को एक नये रूप में प्रस्तुत कर दिया है, जिससे राम का व्यक्तित्व कठोरता के आरोप से मुक्त हो गया है।
सशक्त भावपक्ष के साथ-साथ कलापक्ष की दृष्टि से भी यह कृति एक समर्थ रचना है; जो अपना सन्देश देने में पूर्णतः सफल है।
'स्वजन को दे देने से दण्ड, नहीं हो जाता कोई महान' और 'अन्याय प्रमाणित हो जिसका, कैसी पवित्रता उस जन में' - श्रीराम के चिन्तन की उक्त परिणति ने वह सबकुछ कह दिया है, जो कवि कहना चाहता है। सबकुछ मिलाकर यह प्रयास अत्यन्त सराहनीय है।
- डॉ. एन.के. जैन कुलपति, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर -३०२०१५
उत्तम काव्य डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल द्वारा रचित 'पश्चात्ताप' एक काव्य है। इसके कथ्य और कथानक का उत्स जैनपुराण हैं; तथापि यह संदर्भ लोक प्रसिद्धि प्राप्त है।
विवेच्य काव्य में काव्यशास्त्रीय अनेक अंगों का प्रयोग और उपयोग हुआ है। छन्द और अलंकार विधान तथा रस योजना सहज और स्वाभाविक रूप से व्यवहृत है। काव्य की भाषिक तत्समता और प्राञ्जलता उल्लेखनीय है। सुबोध शैली पटुता से काव्य-कलेवर में कहीं काठिन्य प्रतीत नहीं होता।
विचार और व्यवहार में पवित्रता और सद्भावना का संचरण करने वाला तथा श्रोता और पाठक के अन्तर को छूने वाला काव्य मेरे विचार से उत्तम काव्य कहलाता है। विवेच्य काव्य में उपर्यंकित सभी गुणों का यथायोग्य उपयोग हुआ है। कवि के अनुसार उनकी यह काव्यकृति किशोर काल में रची गयी है; तथापि पिंगल और भाषिक पटुता की दृष्टि से इसमें प्रौढ़ता की गरिमा मुखर हो उठी है। ___ इतना सुन्दर और शुद्ध काव्य प्रणयन के लिये कृपया मेरी बहुतशः बधाइयाँ स्वीकार कीजिये । इत्यलम् ।
-विधावारिधि डॉ. महेन्द्र सागर प्रचंडिया अलीगढ़ (उ.प्र.)
एम.ए., पी.एच.डी., डी.लिट्.