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पश्चात्ताप
पश्चात्ताप
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(११४) मेरी पवित्रता पाकर के,
__ क्यों ना अपराध भुलाती हो। कह दो सीते तुम साफ-साफ, मुझको अब क्यों भरमाती हो।।
(११५) हे राम! राम!! तू बता राम!!,
क्या सोच रहा है तू मन में। अन्याय प्रमाणित हो जिसका,
कैसी पवित्रता उस जन में।।
श्री रामचन्द्र हृदयस्थल में',
यह गूंज उठे प्रति छिन-छिन में। अन्याय प्रमाणित हो जिसका, कैसी पवित्रता उस जन में!
(११७) दिग-दिगन्त में गूंज उठे अर,
___ गूंज उठे सारे नभ में। अन्याय प्रमाणित हो जिसका, कैसी पवित्रता उस जन में?
(११८) रे अग्निकुण्ड की ज्वालाओं के,
स्वर में थी आवाज यही। कह रही पगतले पड़ी हुई,
__ जगधात्री यह पार्थिव्य मही।। १. श्रीराम के हृदय में २. आकाश
जिस तरफ नेत्र उनके जावें,
वे यही देख बस पाते हैं। अन्यायी राजा को पाकर, निर्दोष सताये जाते हैं।
(१२०) लिखने वाला है नहीं कोई,
अक्षर भी नहीं दीखते थे। पर बाँच रहे थे रामचन्द्र, कहते बस सीते-सीते थे।।
(१२१) सीता निर्दोषी सिद्ध हुई,
मैं ही हूँ दोषी सिद्ध आज । पहले सीता परित्यक्त हुई, परित्यक्त हुआ फिर रघुराज ।।
(१२२) अब तक मैं आगे रहा और,
सीता अनुगामी रही सदा। सीता आगे अब हुई राम, उसके पीछे है सुनो प्रजा ।।
(१२३) कहना भारत माँ के सपूत,
जब मिलो परस्पर सीताराम । जिससे तुमको नित याद रहे,
सीता अनुगामी हुए राम ।।