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________________ पर से कुछ भी संबंध नहीं हैं और हमारा अहित ही होना है। उत्तम प्रकृति के व्यक्ति ऐसी भूल नहीं करते; क्योंकि उन्हें वस्तुतत्त्व व आत्मस्वभाव में आस्था है एवं उसी का आश्रय है। शुभाशुभ भाव तो जीव के होते ही नहीं हैं। जीव जब स्वत: व्यवहार से देव-शास्त्र-गुरु व निश्चय से आत्मा की शरण में आये तभी आत्मा का कल्याण होता है, अन्य प्रकार नहीं। उपर्युक्त कथन व्यवहार वचन है, उनसे सिद्धान्त खण्डित नहीं होता; क्योंकि दो द्रव्यों का ऐसा ही सहज निमित्त-नैमित्तिक संबंध है। प्रायोगिक प्रश्नोत्तर बतायें कि इनकी यथार्थ श्रद्धा व सही समझ से धर्म संबंधी क्य लाभ है ? (क) मुझे अपने पुत्र, पुत्रवधू और पड़ोसियों पर बहुत क्रोध आता है; क्योंकि ये मेरी इच्छा के विरुद्ध आचरण करते हैं। (ख) मैंने अपने पुत्र, पुत्रवधू और अपने बेटे-बेटियों को उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा दिया। (ग) मुझे गर्व है कि मैंने अपने बुद्धिबल और वाक्चातुर्य से हत्या के अपराधी को फाँसी के फन्दे से बचा लिया। (क) भाग का उत्तर कार्य - क्रोध का आना ध्रुव उपादान कारण - उस क्रोधी व्यक्ति का आत्मा या चारित्रगुण है, जिसमें क्रोध रूप कार्य उत्पन्न हुआ; क्योंकि क्रोधरूप कार्य की उत्पत्ति ध्रुव आत्मद्रव्य या चारित्रगुण में ही हुई, अन्यत्र नहीं हुई। यह ध्रुव उपादान कारण स्वभाव का नियामक है। परन्तु ध्रुव उपादान क्रोधरूप कार्य में (काल का) नियामक नहीं है; अन्यथा क्रोध कार्य शतत् होते रहने का प्रसंग प्राप्त होगा, जोकि संभव नहीं है। आत्मा के रहते भी क्रोध शतत् होता दिखाई नहीं देता। ___ अनन्तर पूर्वक्षणवर्ती पर्याय का व्यय - यह क्रोधरूप कार्य का क्षणिक उपादानकारण है; क्योंकि क्रोधरूप कार्य की उत्पत्ति इस विधि या पुरुषार्थपूर्वक ही होती है। यह अभावरूप कारण विधि या पुरुषार्थ का नियामक है; परन्तु इसे समर्थ कारण नहीं माना जा सकता; क्योंकि अभाव में से भाव की उत्पत्ति नहीं होती। यह मात्र विधि या पुरुषार्थ का नियामक है, जब भी कार्य होगा तो इसी विधि से अर्थात् इसी पुरुषार्थपूर्वक होगा। अनन्तर उत्तरक्षणवर्ती पर्याय का उत्पाद अथवा तत्समय की योग्यता - यह क्रोधरूप कार्य का तृतीय क्षणिक उपादान कारण है। प्रायोगिक प्रश्नोत्तर प्रश्न ७१ : निम्नांकित कथनों में कार्य एवं कारण की खोज करें तथा
SR No.008365
Book TitlePar se Kuch bhi Sambandh Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size235 KB
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