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पर से कुछ भी संबंध नहीं
उत्तर : क्योंकि जिनसे कार्य सम्पन्न तो न हो; किन्तु जिनकी उपस्थिि या सन्निकटता हो, उन्हें उपचरित या आरोपित कारण कहा जाता है।
उदाहरण : जैसे वर के साथ घोड़े पर बैठे बालक को अनवर कहते हैं। यद्यपि उसमें वरपना किंचित् भी नहीं है, उसे दुल्हन नहीं मिलती; तथापि सहचारी या सन्निकट होने से उसे 'अनवर' कहा जाता है और मात्र सम्मान मिलता है।
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हाँ, उस बालक को 'अनवर' नाम और सम्मान मुफ्त में नहीं मिला। वह अपने सीने पर गोली झेलने जैसा खतरा झेलता है। पहले जब स्वयंवर होते थे। बारात यानि वरयात्रा निकलती थी, उसमें अनवर वर की ही पोशाक में रहता था, जो वर की सुरक्षा करता था । यदि कोई सामने से आक्रमण करे तो पहले अनवर झेलता था। इसीप्रकार निमित्तों को भी निन्दा - प्रशंसा के प्रहार झेलने एवं सहने पड़ते हैं।
प्रधानमंत्री - राष्ट्रपति की गाड़ी के समान ही दो गाड़ी आगे, दो गाड़ी पीछे रहती हैं क्योंकि वे अंग रक्षक हैं।
प्रश्न १५ : उपादान कारण किसे कहते हैं ?
उत्तर : जो द्रव्य स्वयं कार्यरूप परिणमित हो अथवा जिस पदार्थ में कार्य निष्पन्न हो उसे उपादान कारण कहते हैं। पदार्थ की निज सहज शक्ति या मूल स्वभाव ध्रुव उपादान कारण है तथा द्रव्यों में अनादिकाल से जो पर्यायों का परिणमन हो रहा है, उसमें अनन्तर पूर्वक्षणवर्ती पर्याय एवं कार्योत्पत्ति के समय की पर्यायगत योग्यता क्षणिक उपादान कारण है। यह पर्यायगत योग्यता ही कार्य का समर्थ कारण है।
प्रश्न १६ : उपादान कारण कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर: उपादान कारण के मूलत: दो भेद हैं- एक त्रिकाली या ध्रुव उपादान और दूसरा तात्कालिक या क्षणिक उपादान ।
क्षणिक उपादान भी दो प्रकार का है -
निमित्तोपादान कारण स्वरूप एवं भेद-प्रभेद
(क) अनन्तरपूर्व क्षणवर्तीपर्याय ।
(ख) तत्समय की योग्यता ।
इसप्रकार उपादान कारण तीन प्रकार का हो गया है, जो इसप्रकार है
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(१) त्रिकाली उपादान कारण ।
(२) अनन्तर पूर्वक्षणवर्ती पर्याय के व्ययरूप क्षणिक उपादान कारण। (३) तत्समय की योग्यतारूप क्षणिक उपादान कारण ।
प्रश्न १७ : 'योग्यता' शब्द तो आगम में अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। यहाँ 'योग्यता' का क्या अर्थ है ?
उत्तर : जीव की प्रत्येक समय की पर्याय में जो राग या वीतरागतारूप परिणमन करने की स्वतंत्रत शक्ति है, उसे ही उपादान की तत्समय की योग्यता कहते हैं।
द्रव्य में जब / जो कार्य होता है, वह स्वयं द्रव्य की अपनी तत्समय की उपादानगत योग्यता से ही होता है। समय-समय का क्षणिक उपादानकारण पूर्ण स्वाधीन है, स्वतंत्र है, स्वयंसिद्ध है। उसे पर की कोई अपेक्षा नहीं है।
यद्यपि कार्य सम्पन्न होने के काल में कार्य के अनुकूल परद्रव्य रूप निमित्त होते अवश्य हैं; परन्तु उन निमित्तों का कार्य सम्पन्न होने में कोई योगदान नहीं होता। ऐसा ही वस्तु का स्वरूप है।
" निमित्तमात्रं तत्र, योग्यता वस्तुनि स्थिता । बहिनिश्चयकालस्तु, निश्चितं तत्त्वदर्शिभिः ।।
वस्तु में स्थित परिणमनरूप योग्यता ही कार्य का नियामक कारण है, जिसे अंतरंग निमित्त कहा है। निश्चय कालद्रव्य को बाह्यनिमित्त कारण कहा है।"
प्रश्न १८ : त्रिकाली उपादान एवं क्षणिक उपादानों का क्या स्वरूप १. (गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ५८० )