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ॐ नम: सिद्धेभ्यः ।
भैया भगवतीदासजी कृत उपादान-निभित संवाद पर किये गये परम पूज्य श्री कानजी स्वामी के प्रवचन
यह उपादान-निमित्त का संवाद है। अनादिकाल से उपादान-निमित्त का झगड़ा चला आ रहा है। उपादान कहता है कि दर्शन-ज्ञान-चारित्रादि गुणों की सावधानी से आत्मा का कल्याणरूपी कार्य होता है। निमित्त कहता है कि शरीरादिक की क्रिया करने से अथवा देव-गुरु-शास्त्र से और शुभभाव से आत्मा का कल्याण होता है। इसप्रकार स्वयं अपनी बात सिद्ध करने के लिए उपादान और निमित्त दोनों युक्तियाँ उपस्थित करते हैं और झगड़े का समाधान यहाँ पर वीतराग शासन में सच्चे ज्ञान के द्वारा होता है।
अनादिकाल से जगत के अज्ञानी जीवों की दृष्टि पर के ऊपर है; इसलिए 'मेरे आत्मा का कल्याण करने की मुझ में शक्ति नहीं है। मैं अपंग-शक्तिहीन हूँ; कोई देव-गुरु-शास्त्र इत्यादि पर मुझे समझा दें तो मेरा कल्याण हो' - इसप्रकार अनादिकाल से अपने आत्मा के कल्याण को पराश्रित मानता है। ज्ञानी की दृष्टि अपनी आत्मा पर है, इसलिए यह मानता है कि आत्मा स्वयं पुरुषार्थ करेगा तो मुक्ति होगी। अपने पुरुषार्थ के अतिरिक्त किसी के आशीर्वाद इत्यादि से कल्याण होगा- यह मानना, सो अज्ञान है। इसप्रकार उपादान कहता है कि आत्मा से ही कल्याण होता है और निमित्त कहता है कि परवस्तु का साथ हो तो आत्मकल्याण हो। इसमें निमित्त की बात बिलकुल झूठ और अज्ञान से परिपूर्ण है। यही बात इस संवाद में सिद्ध की