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________________ १२२ क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका क्रमबद्धपर्याय : प्रासंगिक प्रश्नोत्तर (५) निमित्त :- जो पदार्थ स्वयं कार्यरूप परिणमित नहीं होता, परन्तु उस पर कार्य उत्पत्ति में अनुकूल होने का आरोप किया जाता है, उसे निमित्त कहते हैं। तेल की उत्पत्ति में, तेली, कोल्हू, मशीन आदि बाह्य-वस्तुएँ निमित्त कही जाती हैं । सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में दर्शनमोहनीय कर्म के उपशम/ क्षयोपशम/क्षय को अन्तरंग तथा देव-शास्त्र-गुरु को बहिरंग निमित्त कहा जाता है । देव-शास्त्र-गुरु की श्रद्धा और सात तत्त्वों के विकल्पात्मक श्रद्धान को भी सम्यग्दर्शन में अन्तरंग निमित्त कहा जाता है तथा यह श्रद्धान आत्मप्रतीतिरूप निश्चय सम्यग्दर्शन में निमित्त है - इस अपेक्षा इसे व्यवहारनय से सम्यग्दर्शन भी कहा जाता है। उपादान-निमित्त के प्रकरण में यह चर्चा विस्तार से की जाती है। प्रश्न १३. उपादान-निमित्त कर्ता-कर्म तथा कारण-कार्य में पाँच समवाय किस प्रकार घटित होते हैं? उत्तर :- उपादान ही कार्योत्पत्ति का यथार्थ कारण होने से निश्चय-कर्ता है तथा कार्य ही कर्ता का कर्म है। अत: कारण-कार्य या कर्ता-कर्म पर्यायवाची हैं। उपादान और निमित्त ये दोनों कारण के भेद कहे जाते हैं। उपादान यथार्थ कारण है तथा निमित्त उपचरित कारण है। स्वभाव, पुरुषार्थ और काललब्धि ये तीनों उपादानगत विशेषतायें हैं। भवितव्यता स्वयं कार्य है तथा निमित्त उपचरित कारण है। अतः चार समवाय उपादानरूप हैं और निमित्त उनसे पृथक् अनुकूल बाह्य पदार्थ है। प्रश्न १४. नियति किसे कहते हैं? उत्तर :- जिनेन्द्र सिद्धान्त कोष भाग २ पृष्ठ ६१२ में नियति को निम्नानुसार परिभाषित किया गया है :___ “द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावरूप चतुष्टय से समुदित नियत कार्य व्यवस्था को नियति कहते हैं। नियत कर्मोदयरूप निमित्त की अपेक्षा इसे ही दैव, नियतकाल की अपेक्षा इसे ही काललब्धि, और होने योग्य नियतभाव या कार्य की अपेक्षा इसे ही भवितव्य कहते हैं। पद्म पुराण सर्ग ३१ श्लोक २१३ में राम को वनवास और भरत को राज्य दिए जाने पर जनसामान्य की प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आचार्य रविषेण लिखते हैं : कालः कर्मेश्वरो दैवं स्वभावः पुरुषः क्रिया। नियतिर्वा करोत्येवं विचित्रं कः समीहितम् ।। "ऐसी विचित्र चेष्टा को काल, कर्म, ईश्वर, दैव, स्वभाव, पुरुष, क्रिया अथवा नियति ही कर सकती है, और कौन कर सकता है?" उक्त सन्दर्भ को पाँच समवाय में घटित करते हुए जिनेन्द्र सिद्धान्त कोष भाग २ पृष्ठ ६१८ में क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी लिखते हैं :__ “काल को नियति में, कर्मव ईश्वर को निमित्त और दैव व क्रिया को भवितव्य में घटित कर लेने पर पाँच बातें रह जाती है। स्वभाव, निमित्त, नियति, पुरुषार्थ व भवितव्य-इन पाँच समवायों से समवेत ही कर्म-व्यवस्था की सिद्धि है, ऐसा प्रयोजन है।" उक्त दोनों उद्धरणों से स्पष्ट है कि नियति को काललब्धि का पर्यायवाची भी कहते हैं तथा द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव अथवा पाँचों समवायों के सुमेल को भी नियति कहते हैं। प्रश्न १५. पाँचों समवाय की मुख्यता से सम्यग्दर्शनरूप कार्य की उत्पत्ति के कारण बताइये? उत्तर :- किसी जीव को सम्यक्त्व की उत्पत्ति कैसे हुई? इस प्रश्न का उत्तर प्रत्येक समवाय की मुख्यता से निम्नानुसार होगा। स्वभाव :- आत्मा के श्रद्धा गुण में सम्यग्दर्शनरूप परिणमन करने की शक्ति है, इसलिए सम्यग्दर्शन हुआ। पुरुषार्थ :- आत्मा के त्रिकाली ज्ञायकस्वभाव की प्रतीतिरूप सम्यक्पुरुषार्थ करने से सम्यग्दर्शन हुआ। 63
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
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