________________
१०८
क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका
प्रश्न २४. चरणानुयोग के ग्रन्थों के आधार पर क्रमबद्धपर्याय की सिद्धि कैसे होती है?
उत्तर :- चरणानुयोग के ग्रन्थ रत्नकरण्ड श्रावकाचार, कार्तिकेयानुप्रेक्षा, अष्टपाहुड आदि के द्वारा सर्वज्ञता या क्रमबद्धपर्याय की सिद्धि होती है, तथा देवशास्त्र-गुरु का स्वरूप, खाद्य-अखाद्य का निर्णय, सर्वज्ञ प्रणीत आगम के अनुसार ही किया जाता है, अन्यथा नहीं। अतः यह भी क्रमबद्धपर्याय का पोषक प्रमाण है।
प्रश्न २५. द्रव्यानुयोग के अनुसार क्रमबद्धपर्याय कैसे सिद्ध की जाती है?
उत्तर :- समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय संग्रह, तत्वार्थसूत्र और उसकी टीकायें-सर्वार्थसिद्धि, तत्वार्थ राजवार्तिक, तत्वार्थ श्लोकवार्तिक आदि, अष्टसहस्री, आप्तमीमांसा, परमात्म-प्रकाश, योगसार, मोक्षमार्ग प्रकाशक आदि ग्रन्थों से भी क्रमबद्धपर्याय की सिद्धि निम्न विषयों के आधार पर होती है। १) कारण-कार्य व्यवस्था २) अकर्त्तावाद ३) द्रव्य-गुण-पर्याय ४) वस्तु स्वातंत्र्य ५) पाँच समवाय ६) निमित्त-उपादान ७) सर्वज्ञता ८) प्रत्येक पर्याय का स्वकाल ९) पर्याय सत् १०) सम्यक्-पुरुषार्थ ११) स्वचतुष्टय १२) सम्यक् नियतिवाद
क्रमबद्धपर्याय : महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर १३) सैंतालीस शक्तियाँ १४) ज्ञान स्वभाव-ज्ञेय स्वभाव १५) कालनय-अकालनय १६) पर्यायों का क्रम-अक्रम स्वरूप
प्रश्न २६. क्रमबद्धपर्याय को सुनिश्चित करने वाली आत्मा की छह शक्तियों के नाम और उनकी परिभाषा लिखिए?
उत्तर :- समयसार ग्रन्थ की आत्मख्याति टीका में आचार्य अमृतचन्द्रदेव ने ४७ शक्तियों का वर्णन किया है। इनमें से निम्न छह शक्तियों द्वारा वस्तु के परिणमन की क्रमबद्ध-व्यवस्था सुनिश्चित होती है।
(१) भाव शक्ति :- इस शक्ति के कारण, द्रव्य अपनी वर्तमान अवस्था से युक्त होता है।
(२) अभाव शक्ति :- इस शक्ति के कारण, द्रव्य में वर्तमान अवस्था के अतिरिक्त और दूसरी अवस्था नहीं होती।
(३) भाव-अभावशक्ति :- इस शक्ति के कारण द्रव्य में वर्तमान पर्याय का आगामी समय में नियम से अभाव हो जाएगा।
(४) अभाव-भाव शक्ति :- इस शक्ति के कारण, आगामी पर्याय आगामी समय में नियम से उत्पन्न होगी।
(५) भाव-भाव शक्ति :- इस शक्ति के कारण, द्रव्य में जिस समय जो पर्याय उत्पन्न होने वाली है, वही पर्याय होगी।
(६) अभाव-अभाव शक्ति :- इस शक्ति के कारण, द्रव्य में जो पर्याय उत्पन्न नहीं होना है, वह नहीं होगी।
प्रश्न २७. क्या क्रमबद्ध-पर्याय की श्रद्धा करना अनिवार्य है? यदि हाँ तो नरक और तिर्यंञ्च गति में इसकी श्रद्धा के बिना ही सम्यग्दर्शन कैसे हो जाता है?
56