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________________ १०६ क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका उत्तर :- क्रमबद्धपर्याय की सच्ची श्रद्धा. ज्ञान स्वभाव की श्रद्धापूर्वक ही होती है और ज्ञान स्वभाव की श्रद्धावाला जीव ज्ञानी और विवेकी होता है, वह पाप का पोषण करके स्वच्छन्दी नहीं हो सकता। ___क्या पूर्व निश्चित होने से कोई अपराध, अपराध नहीं रहेगा? वह अपराध उसने अपने स्वभाव को भूलकर विषय-कषायों की तीव्र आसक्ति के कारण किया गया है। भगवान ने भी उसे अपराधरूप में ही जाना है, अतः अपराध तो अपराध ही है, चाहे कोई उसे जाने या न जाने । अपराधी स्वयं तो उसे पहले से जानता ही है क्योंकि वह पूरी योजना बनाकर अपराध करता है। फिर जब उसके ज्ञान में पूर्व निश्चित होने पर भी अपराध पर अपराध रहता है तो केवली के ज्ञान में झलकने मात्र से वह अपराध नहीं रहेगा - यह कैसे कहा जा सकता है? ___ अपराध पूर्व निश्चित था इसलिए अपराधी को दण्ड नहीं मिलना चाहिए - यह तर्क भी हास्यास्पद है, क्योंकि अपराध को निश्चित माना जाए तो दण्ड विधान को निश्चित क्यों न माना जाए? हमारे संविधान में भी प्रत्येक अपराध का दण्ड निश्चित किया गया है, तो केवलज्ञान में निश्चित क्यों नहीं होगा? भगवान ने किसी को पाप करता हुआ देखा है तो उसका नरक जाना भी अवश्य देखा है। यह कैसे हो सकता है कि वे उसका पाप कार्य तो देखते हैं, परन्तु पाप का फल नहीं देखते! इससे तो उनका ज्ञान अधूरा और अप्रमाणिक हो जाएगा; परन्तु ऐसा नहीं है। उनका ज्ञान सकल-प्रत्यक्ष है। इसप्रकार क्रमबद्धपर्याय की श्रद्धा से स्वच्छन्द होने का प्रश्न ही नहीं उठता, अपितु मिथ्यात्वरूपी महा-स्वच्छन्दता का नाश होता है। प्रश्न २२. प्रथमानुयोग के द्वारा क्रमबद्धपर्याय की सिद्धि कैसे होती है? उत्तर :- सम्पूर्ण प्रथमानुयोग सर्वज्ञ भगवान, अवधिज्ञानी या मनःपर्ययज्ञानी मुनि भगवन्तों द्वारा की गई भविष्यकाल सम्बन्धी सुनिश्चित घोषणाओं से भरा हुआ है। जैसे :- (१) भगवान नेमिनाथ द्वारा १२ वर्ष बाद द्वारका जलने की स्पष्ट घोषणा करना । साथ ही यह भी घोषित करना कि वह किस निमित्त से, कब और क्रमबद्धपर्याय : महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर १०७ कैसे जलेगी? भगवान की बात का भरोसा नहीं करनेवालों के द्वारा अनेक प्रयत्न करने पर भी सब-कुछ वैसा ही हुआ, जैसा भगवान ने कहा था। (२) भगवान आदिनाथ ने भी भगवान महावीर के जीव मारीचि के सम्बन्ध में सब कुछ एककोडा-कोडी सागर पहले ही बता दिया था, किवह इस अवसर्पिणी काल का चौबीसवाँ तीर्थंकर होगा। (३) आचार्य भद्रबाहु ने निमित्त-ज्ञान के आधार पर ही यह बता दिया था कि उत्तर भारत में १२ वर्ष तक अकाल रहेगा-यह घोषणा भी पूर्णतः सत्य हुई थी। (४) सम्राट चन्द्रगुप्त के स्वप्नों के आधार पर भविष्य की घोषणायें की गई थीं, जो वैसी ही घटित हुई। प्रश्न २३. करणानुयोग के आधार पर क्रमबद्धपर्याय कैसे सिद्ध होती है? उत्तर :- सारा करणानुयोग ही सुनिश्चित नियमों पर आधारित है, उसमें हमारी बुद्धि के अनुसार कुछ नहीं होता । जैसे - (१) छ: महीने आठ समय में छ: सौ आठ जीव नित्य निगोद से निकलेंगे और इतने ही समय में इतने ही जीव मोक्ष जावेंगे। (२) संसारी जीव निगोद पर्याय से कुछ अधिक दो हजार सागर के लिए ही निकलता है, उसमें भी दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय असंज्ञी पंचेन्द्रिय, मनुष्य, देव, नारकी आदि के भवों की निश्चित संख्या होती है। उदाहरण के लिए मनुष्यों के भवों की संख्या मात्र ४८ है। (३) प्रत्येक मिथ्यादृष्टि संसारी जीव को पंच परावर्तनरूप संसार में घूमना पड़ता है। (४) भूत-वर्तमान-भविष्य के तीर्थंकरों की संख्या भी निश्चित ही है। (५) प्रत्येक गुणस्थान, मार्गणास्थान, जीव समान आदि के जीवों की संख्या भी निश्चित है। 55
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
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