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________________ क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन सापेक्ष नय सम्यक्-एकान्त है, अर्थात् विवक्षित धर्म को मुख्य एवं अन्य धर्मों को गौण करना सम्यक्-एकान्त है। जैसे - द्रव्यदृष्टि से वस्तु नित्य है। निरपेक्षनय मिथ्या-एकान्त है, अर्थात् वस्तु को सर्वथा विवक्षित धर्मरूप ही मानना और अन्य धर्मों का सर्वथा निषेध करना मिथ्या-एकान्त है। जैसे वस्तु सर्वथा नित्य है। सापेक्षनयों का समूह अर्थात् श्रुत-प्रमाण सम्यक्-अनेकान्त है। परस्पर सापेक्ष दोनों धर्मों की स्वीकार करना सम्यक्-अनेकान्त है। जैसे - वस्तु कथञ्चित् नित्य भी है और कथञ्चित् अनित्य भी है। निरपेक्ष नयों का समूह अर्थात् प्रमाणाभास मिथ्या-अनेकान्त है । परस्पर निरपेक्ष दोनों धर्मों को स्वीकार करना मिथ्या-अनेकान्त है। जैसे - वस्तु सर्वथा नित्य भी है और सर्वथा अनित्य भी है। मिथ्या अनेकान्त को उभयैकान्त भी कहते हैं। ३. जैन-दर्शन में अनेकान्त को भी अनेकान्तरूप से स्वीकार किया गया है। सर्वथा एकान्तरूप से नहीं । अर्थात् जैन-दर्शन सर्वथा एकान्तवादी नहीं है, कथञ्चित् अनेकान्तवादी है और कथञ्चित एकान्तवादी है। यही अनेकान्त में अनेकान्त है। ४. अरनाथ भगवान की स्तुति करते हुए वृहद् स्वयंभूस्तोत्र छंद क्रमांक १०३ में आचार्य समन्तभद्र कहते हैं कि :___ “प्रमाण और नय हैं साधन जिनके, ऐसा अनेकान्त भी अनेकान्त स्वरूप है, क्योंकि सर्वांशग्राही प्रमाण की अपेक्षा वस्तु अनेकान्त-स्वरूप है एवं अंशग्राही नय की अपेक्षा वस्तु एकान्तरूप सिद्ध है।" ५. आचार्य अकलंक-देव ने राजवर्तिक अध्याय १ सूत्र ६ की टीका में वृक्ष के उदाहरण से सर्वथा-अनेकान्त और सर्वथा-एकान्त का खंडन किया है जिसका भाव निम्नानुसार है। शाखा, पत्ते, पुष्प आदि अनेक अंगों का समूहरूप वृक्ष अनेकान्तरूप है तथा शाखा, पत्ते, पुष्प आदि अंग एकान्तरूप हैं। जिसप्रकार शाखा आदि अंगों का सर्वथा अभाव मानने पर उनके समुदायरूप वृक्ष के अभाव का भी प्रसंग आएगा; उसीप्रकार सम्यक्-एकान्त का निषेध करने पर सम्यक्-अनेकान्त के अभाव का भी प्रसंग आएगा। जिसप्रकार यदि शाखा आदि किसी एक अंग का ही एकान्त स्वीकार किया जाए तो उसके अविनाभावी अन्य अंगों का भी लोप होने से सर्वलोप का प्रसंग आएगा इसीप्रकार वस्तु के एक धर्म को ही सर्वथा स्वीकार किया जाए, तो अन्य अंगों का लोप होने से वस्तु के सर्वथा अभाव का प्रसंग आएगा। इसीप्रकार यदि सम्यक्-अनेकान्तरूप वृक्ष का निषेध किया जाए तो उसके शाखा आदि अंगों अर्थात् सम्यक्-एकान्त के भी अभाव का प्रसंग आएगा। और यदि सर्वथा वृक्ष को ही स्वीकार किया जाए तो भी शाखा आदि के अभाव का प्रसंग आने से वृक्ष के लोप का भी प्रसंग आएगा। सम्यक् एकान्त नय है और सम्यक् अनेकान्त प्रमाण, इसीलिए वस्तु कथञ्चित् (नयों की अपेक्षा) सम्यक्-एकान्तरूप और कथञ्चित् (प्रमाण की अपेक्षा) सम्यक्-अनेकान्तरूप है। वस्तु न सर्वथा एकान्तरूप है और न सर्वथा अनेकान्तरूप है। यही अनेकान्त में अनेकान्त है। ६. मिथ्या-अनेकान्त को समझाने के लिये- निम्न उदाहरण भी दिये जा सकते हैं। १. पाँचवीं और तीसरी कक्षा की पुस्तक मिलकर आठवीं कक्षा की नहीं हो सकती। २. युद्ध के मैदान में किसी सैनिक का सिर और किसी का धड़ मिलाकर एक सैनिक नहीं बन सकता । अतः दो सर्वथा भिन्न धर्मों के समूहरूप कोई वस्तु नहीं हो सकती। प्रश्न :६३. एकान्त और अनेकान्त के दोनों भेदों को उदाहरण सहित समझाइए? ६४. जैन-दर्शन अनेकान्त में भी अनेकान्त को स्वीकार करता है। इस कथन की
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
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