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________________ क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका ७. उक्त कथनों से स्पष्ट है कि एकान्त नियतिवाद और क्रमबद्धपर्याय भिन्न-भिन्न हैं, इनमें कोई समानता नहीं है। स्वामीजी एकान्त नियतवाद के पोषक नहीं, अपितु सच्चे अनेकान्तवादी हैं। प्रश्न :५८. एकान्त नियतिवाद क्या है? ५९. क्रमबद्धपर्याय को स्वीकार करने के एकान्त नियतवाद क्यों नहीं होता? ६०. क्रमबद्धपर्याय को मानने में पुरुषार्थ किस प्रकार होता है? ६१. नियति', 'दैव', 'काललब्धि' और 'भवितव्य' की परिभाषा लिखिए? क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन २. उपर्युक्त पाँचों समवायों में से किसी एक से ही कार्य की उत्पत्ति मानना एवं अन्य समवायों का निषेध करना एकान्त मिथ्यात्व है, तथा कार्योत्पत्ति में प्रत्येक समवाय का योगदान स्वीकार करना सम्यक्-अनेकान्त है। ३. प्रत्येक समवाय का निषेध करने से उत्पन्न होने वाली परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए उसकी उपयोगिता सिद्ध की जा सकती है। जैसे - यदि स्वभाव को स्वीकार न किया जाए, तो रेत में से भी तेल निकलना चाहिए। इसीप्रकार किसी एकसमवाय को ही सर्वथा स्वीकार करने से उत्पन्न परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए सर्वथा एकान्त को मिथ्या सिद्ध करना चाहिए। जैसे - यदि स्वभाव के अतिरिक्त अन्य किसी समवाय को न माना जाए तो तिल में से अपने आप हमेशा तेल निकलते रहना चाहिए। पाठ्य पुस्तक के पृष्ठ ६८ पर पाँचों समवायों के सम्बन्ध में पण्डित टोडरमलजी के विचार दिए हैं, वहाँ इनकी विशेष चर्चा की जाएगी। प्रश्न :६२. पाँचों समवायों की परिभाषा लिखकर कार्योत्पत्ति में इनकी अनिवार्यता सिद्ध कीजिए। **** पाँच समवाय गद्यांश२३ कार्योत्पत्ति में पञ्च कारणों.... ...ऐसा प्रयोजन है। (पृष्ठ ४० पैरा ५ से पृष्ठ ४१ से पैरा ६ तक) विचार बिन्दु : १. प्रत्येक कार्य की उत्पत्ति में पाँच समवाय अवश्य होते हैं। स्वभाव, पुरुषार्थ, भवितव्यता (होनहार या नियति) काललब्धि, निमित्त । इस निर्देशिका के मंगलाचरण के पिछले पृष्ठ पर दिए गए काव्य द्वारा इनका स्वरूप निम्नानुसार समझा जा सकता है। स्वभाव :- वस्तु में विवक्षित कार्य उत्पन्न करने की शक्ति । पुरुषार्थ :- विवक्षित कार्यरूप परिणमि होने में वस्तु की शक्ति का उपयोग। होनहार :- होने योग्य विवक्षित कार्य। काललब्धि :- विवक्षित कार्य की उत्पत्ति का स्वकाल । निमित्त :- विवक्षित कार्य की उत्पत्ति में अनुकूल बाह्य-पदार्थ । अनेकान्त में भी अनेकान्त गद्यांश २४ इस पर कुछ लोग.............. ..........सम्यक्-अनेकान्त प्रमाण । (पृष्ठ ४२ पैरा ६ से पृष्ठ ४४ से पैरा ६ तक) विचार बिन्दु : १. कुछ लोगों को क्रमबद्धपर्याय को स्वीकार करने में एकान्त की शंका होती है। क्रमबद्धपर्याय की स्वीकृति में सम्यक्-एकान्त अवश्य है, परन्तु मिथ्या एकान्त नहीं। २. इस सन्दर्भ में यह जानने योग्य है कि एकान्त और अनेकान्त सम्यक् और मिथ्या के भेद से दो-दो प्रकार के होते हैं, जिनका स्वरूप निम्नानुसार 34
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
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