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________________ 64 जोगसारु (योगसार) जोगसारु (योगसार) जो परियाणइ अप्प परु सो जो पाउ वि सो पाउ मुणि जो पिंडत्थु पयत्थु बुह जो सम-सुक्ख-णिलीणु बुहु जो सम्मत्त-पहाण बुहु सो णासग्गि अभिंतरहँ णिच्छइँ लोय-पमाणु मुणि णिम्मल-झाण-परिट्ठिया णिम्मलु णिक्कलु सुद्ध जिण ताम कुतित्थइँ परिभमइ तित्थई देउलि देउ जिणु तित्थहिं देवलि देउ णवि ति-पयारो अप्पा मुणहि तिहिं रहियउ तिहिं गुण दसणु जं पिच्छियइ बुह देहादिउ जे पर कहिय देहादिउ जे पर कहिय देहादिउ जो परु मुणइ देहादेवलि देउ जिणु धंधइ पडियउ सयल जगि धण्णा ते भयवंत बुह जे धम्मु ण पढियइँ होइ परिणामे बंधु जि कहिउ पुग्गलु अण्णु जि अण्णु पुणिं पावइ सग्ग जिउ पुरिसायार-पमाणु जिय बे छंडिवि बे-गुण-सहिउ बे ते चउ पंच विणवहँ बे-पंचहँ रहियउ मुणहि मग्गण-गुण-ठाणइ मिच्छादिउ जो परिहरणु मिच्छा-दसण-मोहियउ मूढा देवलि देउ णवि मणु-इंदिहि वि छोडियइ रयणत्तय-संजुत्त जिउ रयण दीउ दिणयर दहिउ राय-रोस बे परिहरिवि राय-रोस बे परिहरिवि वउ तउ संजमु सीलु जिय वउ तउ संजमु सीलु जिय वज्जिय सयल-वियप्पइँ वय-तव-संजम-मूल-गुण विरला जाणहिँ तत्तु बुह संसारहँ भय-भीयएँ संसारहँ भय-भीयह सत्थ पढंतहँ ते वि जड सम्माइट्ठी-जीवडहँ दुग्गइ सव्व अचेयण जाणि जिय सव्वे जीवा णाणमया सागारु वि णागारु कुवि सुद्ध-पएसहँ पूरियउ सुद्धप्पा अरु जिणवरहँ भेउ सुद्ध सचेयणु बुद्धु जिणु सुहुमहँ लोहहँ जो विलउ सो सिउ संकरु विण्हु सो 76 | हिंसादिउ परिहारु करि Woros30mm or 03 Nmorw 0909m0. Mor00Nmm Smom 0 0 0
SR No.008355
Book TitleJogsaru Yogsar
Original Sutra AuthorYogindudev
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages33
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size129 KB
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