________________
तम खण्डित मण्डित नेह दीपक जोवत हों। तुम पदतर हे सुखगेह भ्रमतम खोवत हों ।। श्री वीर महा अतिवीर सन्मति-नायक हो।
जय वर्द्धमान गुणधीर सन्मति-दायक हो ।। ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
हरिचन्दन अगर कपूर चूर सुगन्ध करा।
तुम पदतर खेवत भूरि आठों कर्म जरा ||श्री. ।। ॐ ह्रीं श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
रितुफल कलवर्जित लाय, कंचन थाल भरों।
शिवफल हित हे जिनराय तुम ढिंग भेंट धरों ।।श्री. ।। ॐ ह्रीं श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जलफल वसु सजि हिमथार तन-मन मोद धरों।
गुण गाऊँ भवदधितार पूजत पाप हरों ।।श्री. ।। ॐ ह्रीं श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अध्य निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक
(राग टप्पा चाल में) मोहि राखो हो सरना, श्री वर्द्धमान जिनरायजी ।।मोहि. ।। गरभ साढ़ सित छ? लियो तिथि, त्रिशला उर अघ हरना।
सुर सुरपति तित सेव करी नित, मैं पूजों भव तरना ।।मोहि. ।। ॐ ह्रीं आषाढशुक्लषष्ठयां गर्भमंगलमण्डिताय श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
जनम चैत सित तेरस के दिन, कुण्डलपुर कन वरना। सुरगिर सुरगुरु पूज रचायो, मैं पूजों भव हरना।।मोहि. ।। ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लत्रयोदश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा
मगसिर असित मनोहर दशमी, ता दिन तप आचरना।
नृपकुमार घर पारन कीनों, मैं पूजों तुम चरना ।।मोहि. ।। ॐ ह्रीं मार्गशीर्षकृष्णदशम्यां तपोमंगलमंडिताय श्री वर्द्धमान जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
100 जिनेन्द्र अर्चना
शुकलदर्श वैशाख दिवस अरि, घाति चतुक छय करना।
केवल लहि भवि भवसर तारे, जजों चरन सुख भरना।।मोहि. ।। ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लदशम्यां ज्ञानमंगलमंडिताय श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
कार्तिकश्याम अमावस शिवतिय पावापुरतें वरना ।
गनफनिवृन्द जजै तित बहुविध, मैं पूजों भय हरना ।।मोहि. ।। ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमंडिताय श्री वर्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
(हरिगीतिका) गनधर असनिधर, चक्रधर, हलधर गदाधर वरवदा, अरु चापधर, विद्यासुधर, तिरसूलधर सेवहिं सदा । दुखहरन आनन्द भरन तारन-तरन चरन रसाल हैं, सुकुमाल गुनमनिमाल उन्नत, भाल की जयमाल हैं।।
(छन्द घत्तानन्द) जय त्रिशलानन्दन, हरिकृतवंदन, जगदानन्दन चन्दवरं । भवतापनिकन्दन, तन कनमन्दन, रहितसपन्दन नयनधरं ।।
(छन्द त्रोटक) जय केवलभानुकलासदनं, भवि-कोकविकाशन कन्दवनं । जगजीत महारिपु मोहहरं, रजज्ञानदृगांवर चूर करं ।। गर्भादिक मंगलमण्डित हो, दुःख दारिद को नित खण्डित हो। जगमाहिं तुम्ही सत पण्डित हो, तुम ही भव-भावविहंडित हो।। हरिवंश सरोजन को रवि हो, बलवन्त महन्त तुम्हीं कवि हो। लहि केवल धर्मप्रकाश कियो, अबलों सोई मारग राजति हो।। पुनि आप तने गुन माहिं सही, सुर मग्न रहैं जितने सब ही। तिनकी वनिता गुन गावत हैं, लय माननिसों मन भावत हैं।। पुनि नाचत रंग उमंग भरी, तुअ भक्ति विर्षे पग एम धरी।
झननं झन झन झननं, सुर लेत तहाँ तननं तननं ।। जिनेन्द्र अर्चना/1000000
86