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धूप सुवास विथार, चन्दन अगर कपूर की । जनम रोग निरवार, सम्यक् रत्नत्रय भजूँ । ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयाय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि. स्वाहा । फल शोभा अधिकार, लोंग छुहारे जायफल । जनम - रोग निरवार, सम्यक् रत्नत्रय भजूँ ।। ॐ ह्रीं श्रीं सम्यक्रत्नत्रयाय मोक्षफलप्राप्तये फलं नि. स्वाहा । आठ दरब निरधार, उत्तम सों उत्तम लिये | जनम - रोग निरवार, सम्यक् रत्नत्रय भजूँ ।। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । सम्यक् दरशन ज्ञान व्रत, शिव मग तीनों मयी । पार उतारन यान 'द्यानत' पूजों व्रत सहित ।। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयाय अनर्घ्यपदप्राप्तये पूर्णार्घ्यं नि. स्वाहा ।
सम्यग्दर्शन पूजन (दोहा)
सिद्ध अष्ट- गुनमय प्रकट, मुक्त जीव-सोपान । ज्ञान चरित जिहँ बिन अफल, सम्यक्दर्श प्रधान ।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टांगसम्यग्दर्शन ! अत्र अवतर अवतर, संवौषट् इति आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्री अष्टांगसम्यग्दर्शन ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः इति स्थापनम् ।
ॐ ह्रीं श्री अष्टांगसम्यग्दर्शन ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् इति सन्निधिकरणं ।
(सोरठा)
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नीर सुगन्ध अपार, तृषा हरै मल छय करै सम्यग्दर्शन सार, आठ अंग पूजौं सदा ।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टांगसम्यग्दर्शनाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । जल केसर घनसार, ताप हरै सीतल करै । सम्यग्दर्शन सार, आठ अंग पूजौं सदा ।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टांगसम्यग्दर्शनाय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा । १३४////////
जिनेन्द्र अर्चना
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अछत अनूप निहार, दारिद नाशै सुख भरै । सम्यग्दर्शन सार, आठ अंग पूजौं सदा ।। ॐ ह्रीं श्री अष्टांगसम्यग्दर्शनाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
पहुप सुवास उदार, खेद हरै मन शुचि करै । सम्यग्दर्शन सार, आठ अंग पूजौं सदा ।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टांगसम्यग्दर्शनाय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। नेवज विविध प्रकार, छुधा हरै थिरता करै । सम्यग्दर्शन सार, आठ अंग पूजौं सदा ।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टांगसम्यग्दर्शनाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । दीपज्योति तम हार, घट-पट परकाशै महा । सम्यग्दर्शन सार, आठ अंग पूजौं सदा ।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टांगसम्यग्दर्शनाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । धूप घ्रान सुखकार, रोग विघन जड़ता हरै । सम्यग्दर्शन सार, आठ अंग पूजौं सदा ।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टांगसम्यग्दर्शनाय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । श्रीफल आदि विथार, निहचै सुर - शिव - फल करै । सम्यग्दर्शन सार, आठ अंग पूजौं सदा ।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टांगसम्यग्दर्शनाय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । जल गन्धाक्षत चारु, दीप धूप फल फूल चरु । सम्यग्दर्शन सार, आठ अंग पूजौं सदा ।।
ॐ ह्रीं श्री अष्टांगसम्यग्दर्शनाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जिनेन्द्र अर्चना
जयमाला (दोहा)
आप आप निहचै लखै, तत्त्व-प्रीति व्यवहार । रहित दोष पच्चीस हैं, सहित अष्ट गुन सार ।।
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