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जय-जय के नाद से गूंजा आकाश है। छूटेंगे पाप सब निश्चय यह आज है ।। देख लो 'सौभाग्य' खुला आज मुक्ति द्वार है।।३।।
देखे देव जगत के सारे, एक नहीं मन भाये । पुण्य-उदय से आज तिहारे, दर्शन कर सुख पाये ॥१॥ जन्म-मरण नित करते-करते, काल अनन्त गमाये। अब तो स्वामी जन्म-मरण का, दुःखड़ा सहा न जाये।।२।। भवसागर में नाव हमारी, कब से गोता खाये । तुम ही स्वामी हाथ बढ़ाकर, तारो तो तिर जाये ।।३।। अनुकम्पा हो जाय आपकी, आकुलता मिट जाये। 'पंकज' की प्रभु यही वीनती, चरण-शरण मिल जाये।।४।।
शास्त्रभक्ति
वीर प्रभु के ये बोल, तेरा प्रभु! तुझ ही में डोले। तुझ ही में डोले, हाँ तुझ ही में डोले। मन की तू पुंडी को खोल, खोल-खोल-खोल।
तेरा प्रभु तुझ ही में डोले ।।टेक।। क्यों जाता गिरनार, क्यों जाता काशी, घट ही में है तेरे, घट-घट का वासी। अन्तर का कोना टटोल, टोल-टोल-टोल ।।१।। चारों कषायों को तूने है पाला, आतम प्रभु को जो करती है काला । इनकी तो संगति को छोड़, छोड़-छोड़-छोड़ ।।२।। पर में जो ढूंढा न भगवान पाया, संसार को ही है तूने बढ़ाया। देखो निजातम की ओर, ओर-ओर-ओर ।।३ ।। मस्तों की दुनिया में तू मस्त हो जा, आतम के रंग में ऐसा तू रँग जा। आतम को आतम में घोल-घोल-घोल ।।४।। भगवान बनने की ताकत है तुझमें, तू मान बैठा पुजारी हूँ बस मैं। ऐसी तू मान्यता को छोड़, छोड़-छोड़-छोड़।।५।।
हे जिनवाणी माता! तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रोड़ों प्रणाम । शिवसुखदानी माता! तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रोड़ों प्रणाम ।।टेक।। तू वस्तु-स्वरूप बतावे, अरु सकल विरोध मिटावे । हे स्याद्वाद विख्याता! तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रोड़ों प्रणाम ।।१।। तू करे ज्ञान का मण्डन, मिथ्यात कुमारग खण्डन । हे तीन जगत की माता! तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रोड़ों प्रणाम ।।२।। तू लोकालोक प्रकाशे, चर-अचर पदार्थ विकाशे । हे विश्वतत्त्व की ज्ञाता तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रोड़ों प्रणाम ।।३।। शुद्धातम तत्त्व दिखावे, रत्नत्रय पथ प्रकटावे । निज आनन्द अमृतदाता! तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रोड़ों प्रणाम ।।४।। हे मात! कृपा अब कीजे, परभाव सकल हर लीजे । 'शिवराम' सदा गुण गाता तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रोड़ों प्रणाम ।।५।।
आज हम जिनराज! तुम्हारे द्वारे आये । हाँ जी हाँ हम, आये-आये ।।टेक ।।
0000000000000 जिनेन्द्र अर्चना
जिनवर चरण भक्ति वर गंगा,
ताहि भजो भवि नित सुखदानी । जिनेन्द्र अर्चना/0001
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