SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हस्त-युगल जिनवर कहें, पर का कर्ता होय । ऐसी मिथ्याबुद्धि से ही, भ्रमण चतुरगति होय ।। या पद्मासन विराजे जिनवर, झलके शान्ति अपार ।।२।। लोचन द्वय जिनवर कहें, देखा सब संसार । पर दुःखमय गति चतुर में, ध्रुव आत्मतत्त्व ही सार ।। यातें नाशादृष्टि विराजे जिनवर, झलके शान्ति अपार ।।३।। अन्तर्मुख मुद्रा अहो, आत्मतत्त्व दरशाय । जिनदर्शन कर निजदर्शन पा, सत्गुरु वचन सुहाय ।। यातें अन्तर्दृष्टि विराजे जिनवर, झलके शान्ति अपार ।।४।। चिदानन्द चैतन्यमय, शुद्धातम को जान । निज स्वरूप में लीन हो, पाओ केवलज्ञान ।। नव केवल लब्धि प्रकटाओ, फिर योगों को नष्ट कराओ। अविनाशी सिद्ध पद को पाओ, आया-आया रे अवसर आनन्द का ।।३।। प्रभु हम सब का एक, तू ही है, तारणहारा रे। तुम को भूला, फिरा वही नर, मारा मारा रे ।।टेक ।। बड़ा पुण्य अवसर यह आया, आज तुम्हारा दर्शन पाया। फूला मन यह हुआ सफल, मेरा जीवन सारा रे ।।१।। भक्ति में अब चित्त लगाया, चेतन में तब चित ललचाया। वीतरागी देव! करो अब, भव से पारा रे ।।२।। अब तो मेरी ओर निहारो, भवसमुद्र से नाव उबारो।। 'पंकज' का लो हाथ पकड़, मैं पाऊँ किनारा रे ।।३।। जीवन में मैं नाथ को पाऊँ, वीतरागी भाव बढ़ाऊँ। भक्तिभाव से प्रभु चरणन में, जाऊँ-जाऊँ रे ।।४।। आओ जिन मंदिर में आओ, श्री जिनवर के दर्शन पाओ। जिन शासन की महिमा गाओ, आया-आया रे अवसर आनन्द का ।।टेक।। हे जिनवर तव शरण में, सेवक आया आज । शिवपुर पथ दरशाय के, दीजे निज पद राज ।। प्रभु अब शुद्धातम बतलाओ, चहुँगति दुःख से शीघ्र छुड़ाओ। दिव्य-ध्वनि अमृत बरसाओ। आया-प्यासा मैं सेवक आनन्द का ।।१।। जिनवर दर्शन कीजिए, आतम दर्शन होय । मोहमहातम नाशि के, भ्रमण चतुर्गति खोय ।। शुद्धातम को लक्ष्य बनाओ। निर्मल भेद-ज्ञान प्रकटाओ। अब विषयों से चित्त हटाओ, पाओ-पाओ रे मारग निर्वाण का ।।२।। धन्य-धन्य आज घड़ी कैसी सुखकार है। सिद्धों का दरबार है ये सिद्धों का दरबार है ।।टेक ।। खुशियाँ अपार आज हर दिल में छाई हैं। दर्शन के हेतु देखो जनता अकुलाई है। चारों ओर देख लो भीड़ बेशुमार है।।१।। भक्ति से नृत्य-गान कोई है कर रहे। आतम सुबोध कर पापों से डर रहे ।। पल-पल पुण्य का भरे भण्डार है।।२।। जिनेन्द्र अर्चना 10000 ३१६000000000 10. जिनेन्द्र अर्चना 159
SR No.008354
Book TitleJinendra Archana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bansal
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size552 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy