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निर्वाणकाण्ड (भाषा) (श्री भैया भगवतीदास कृत)
(दोहा) वीतराग वन्दौं सदा, भावसहित सिर नाय । कहूँ काण्ड निर्वाण की, भाषा सुगम बनाय ।।
(चौपाई) अष्टापद आदीश्वर स्वामि, वासुपूज्य चम्पापुरि नामि । नेमिनाथ स्वामी गिरनार, बन्दौं भाव-भगति उर धार ।। चरम तीर्थंकर चरम-शरीर, पावापुरि स्वामी महावीर । शिखर समेद जिनेसुर बीस, भावसहित बन्दौं निश-दीस ।। वरदत्तराय रु इन्द्र मुनिन्द, सायरदत्त आदि गुणवृन्द । नगर तारवर मुनि उठकोड़ि', बन्दौं भावसहित कर जोड़ि।। श्री गिरनार शिखर विख्यात, कोड़ि बहत्तर अरु सौ सात । शम्भु प्रद्युम्न कुमर द्वै भाय, अनिरुध आदि नमूं तसुपाय ।। रामचन्द के सुत द्वै वीर, लाडनरिन्द आदि गुणधीर । पाँच कोड़ि मुनि मुक्ति मँझार, पावागिरि बन्दौं निरधार ।। पाण्डव तीन द्रविड़-राजान, आठ कोड़ि मुनि मुकति पयान । श्री शत्रुजयगिरि के सीस, भावसहित बन्दौं निश-दीस ।। जे बलभद्र मुकति में गये, आठ कोड़ि मुनि औरहु भये । श्री गजपन्थ शिखर सुविशाल, तिनके चरण न| तिहुँ काल ।। राम हणू सुग्रीव सुडील, गव गवाख्य नील महानील । कोड़ि निन्याणव मुक्ति पयान, तुंगीगिरि वन्दौं धरि ध्यान ।। नंग-अनंगकुमार सुजान, पाँच कोड़ि अरु अर्द्ध प्रमाण । मुक्ति गये सोनागिरि शीश, ते बन्दौं त्रिभुवनपति ईस ।। रावण के सुत आदिकुमार, मुक्ति गये रेवा-तट सार ।
कोटि पंच अरु लाख पचास, ते बन्दौं धरि परम हुलास ।। १.साढ़े तीन करोड़
10. जिनेन्द्र अर्चना
रेवानदी सिद्धवर कूट, पश्चिम दिशा देह जहँ छूट । दै चक्री दश कामकुमार, ऊठकोड़ि वन्दौं भव पार ।। बड़वानी बड़नगर सुचंग, दक्षिण दिशि गिरि चूल उतंग । इन्द्रजीत अरु कुम्भ जु कर्ण, ते बन्दौं भव-सागर-तर्ण ।। सुवरणभद्र आदि मुनि चार, पावागिरि-वर शिखर मँझार । चेलना नदी-तीर के पास, मुक्ति गये बन्दौं नित तास ।। फलहोड़ी बड़गाम अनूप, पश्चिम दिशा द्रोणगिररूप । गुरुदत्तादि मुनीश्वर जहाँ, मुक्ति गये बन्दौं नित तहाँ ।। बालि महाबालि मुनि दोय, नागकुमार मिले त्रय होय । श्री अष्टापद मुक्ति मँझार, ते बन्दौं नित सुरत सँभार ।। अचलापुर की दिश ईसान, तहाँ मेंढ़गिरि नाम प्रधान । साढ़े तीन कोड़ि मुनिराय, तिनके चरण नमूं चित लाय ।। वंशस्थल वन के ढिग होय, पश्चिम दिशा कुन्थुगिरि सोय। कुलभूषण देशभूषण नाम, तिनके चरणनि करूँ प्रणाम ।। जसरथ राजा के सुत कहे, देश कलिंग पाँच सौ लहे। कोटिशिला मुनि कोटि प्रमान, वन्दन करूँ जोरि जुग पान ।। समवसरण श्रीपार्श्व-जिनंद, रेसन्दीगिरि नयनानन्द । वरदत्तादि पंच ऋषिराज, ते बन्दौं नित धरम-जिहाज ।। मथुरापुर पवित्र उद्यान, जम्बूस्वामीजी निर्वाण । चरमकेवली पंचम काल, ते बन्दौं नित दीनदयाल ।। तीन लोक के तीरथ जहाँ, नित प्रति वन्दन कीजै तहाँ। मन-वच-काय सहित सिरनाय, वन्दन करहिं भविक गुणगाय ।। संवत् सतरह सौ इकताल, आश्विन सुदि दशमी सुविशाल । 'भैया' वन्दन करहिं त्रिकाल, जय निर्वाणकाण्ड गुणमाल ।।
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जिनेन्द्र अर्चना 10000
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