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षट्खण्डागम टीकाएँ पढ़ मन होता भव पार का। श्रुतपंचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का ।।५।। फिर तो ग्रन्थ हजारों लिक्खे ऋषि-मुनियों ने ज्ञानप्रधान । चारों ही अनुयोग रचे जीवों पर करके करुणा दान ।। पुण्य कथा प्रथमानुयोग द्रव्यानुयोग है तत्त्व प्रधान । एक्सरे करणानुयोग चरणानुयोग कैमरा महान ।। यह परिणाम नापता है वह बाह्य चरित्र विचार का। श्रुतपंचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का ।।६।। जिनवाणी की भक्ति करें हम जिनश्रुत की महिमा गायें। सम्यग्दर्शन का वैभव ले भेद-ज्ञान निधि को पायें ।। रत्नत्रय का अवलम्बन लें निज स्वरूप में रम जायें। मोक्षमार्ग पर चलें निरन्तर फिर न जगत में भरमायें ।। धन्य-धन्य अवसर आया है अब निज के उद्धार का। श्रुतपंचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का ।।७।। गूंजा जय-जय नाद जगत में जिनश्रुत जय-जयकार का।
श्रुतपंचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का ।। ॐ ह्रीं श्री परमश्रुतषट्खण्डागमाय जयमालापूर्णाऱ्या निर्वपामीति स्वाहा ।
(दोहा) श्रुतपंचमी सुपर्व पर, करो तत्त्व का ज्ञान । आत्मतत्त्व का ध्यान कर, पाओ पद निर्वाण ।।
(पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्)
श्री निर्वाणक्षेत्र पूजन (पं.द्यानतरायजी कृत)
(सोरठा) परम पूज्य चौबीस, जिहँ जिहँ थानक शिव गये।
सिद्धभूमि निश-दीस, मन-वच-तन पूजा करौं।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्राणि ! अत्र अवतरत अवतरत संवौष्ट । ॐ ह्रीं चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्राणि ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्राणि ! अत्र मम सन्निहितानि भवत् भवत् वषट् ।
(गीता) शुचि क्षीर-दधि-समनीर निरमल, कनक-झारी में भरौं। संसार पार उतार स्वामी, जोर कर विनती करौं ।। सम्मेदगढ़ गिरनार चम्पा, पावापुरि कैलासकों।
पूजों सदा चौबीस जिन, निर्वाणभूमि-निवासकों ।। ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थंकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा।
केशर कपूर सुगन्ध चन्दन, सलिल शीतल विस्तरौं । भव-ताप को सन्ताप मेटो, जोर कर विनती करौं ।। सम्मेदगढ़ गिरनार चम्पा, पावापुरि कैलासकों।
पूजों सदा चौबीस जिन, निर्वाणभूमि-निवासकों ।। ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यः चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
मोती-समान अखण्ड तन्दुल, अमल आनन्द धरि तरौं।
औगुन-हरौ गुन करौ हमको, जोर कर विनती करौं । ।सम्मेद. ।। ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यः अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ फूल-रास सुवास-वासित, खेद सब मन के हरौं।
दुःख-धाम काम विनाश मेरो, जोर कर विनती करौं । सम्मेद. ।। ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
नेवज अनेक प्रकार जोग मनोग धरि भय परिहरौं ।
यह भूख-दूखन टार प्रभुजी, जोर कर विनती करौं । ।सम्मेद. ।। ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। जिनेन्द्र अर्चना
स्व-पर के भिन्नत्व का अबोध, पर के प्रति अहं एवं ममता उत्पन्न करता है।
10 जिनेन्द्र अर्चना
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