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शुद्ध स्वानुभव के पुष्पों से निज अन्तर सुरभित कर लूँ । महाशील गुण के प्रताप से मैं कंदर्प - दर्प हर लूँ ।। श्रुत पंचमी पर्व शुभ उत्तम जन श्रुत को वंदन कर लूँ । षट्खण्डागम धवल जयधवल महाधवल पूजन कर लूँ ।। ॐ ह्रीं श्री परमश्रुतषट्खण्डागमाय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । शुद्ध स्वानुभव के अति उत्तम प्रभु नैवेद्य प्राप्त कर लूँ।
अमल अतीन्द्रिय निजस्वभाव से दुखमय क्षुधाव्याधि हर लूँ ।। श्रुत. ।। ॐ ह्रीं श्री परमश्रुतषट्खण्डागमाय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। शुद्धस्वानुभव के प्रकाशमय दीप प्रज्वलित मैं कर लूँ।
मोहतिमिर अज्ञान नाश कर निज कैवल्य ज्योति वर लूँ ।।श्रुत. ।। ॐ ह्रीं श्री परमश्रुतषट्खण्डागमाय अज्ञानांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । शुद्ध स्वानुभव गन्ध सुरभिमय ध्यान धूप उर में भर लूँ । संवर सहित निर्जरा द्वारा मैं वसु कर्म नष्ट कर
लूँ । । श्रुत. ॥
ॐ ह्रीं श्री परमश्रुतषट्खण्डागमाय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । शुद्ध स्वानुभव का फल पाऊँ मैं लोकाग्र शिखर वर लूँ। अजर अमर अविकल अविनाशी पदनिर्वाण प्राप्त कर लूँ ।।श्रुत ।। ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट्खण्डागमाय महा मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । शुद्ध स्वानुभव दिव्य अर्घ्य ले रत्नत्रय सुपूर्ण कर लूँ ।
भव-समुद्र को पार करूँ प्रभु निज अनर्घ्य पद मैं वर लूँ ।।श्रुत. ।। ॐ ह्रीं श्री परमश्रुतषट्खण्डागमाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला (ताटंक)
श्रुतपंचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का। गूँजा जय-जयकार जगत में जिनश्रुत के अवतार का । । टेक ॥। ऋषभदेव की दिव्यध्वनि का लाभ पूर्ण मिलता रहा। महावीर तक जिनवाणी का विमल वृक्ष खिलता रहा ।।
जिनेन्द्र अर्चना
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हुए केवली अरु श्रुतकेवलि ज्ञान अमर फलता रहा। फिर आचार्यों के द्वारा यह ज्ञानदीप जलता रहा ।। भव्यों में अनुराग जगाता मुक्तिवधू के प्यार का । श्रुतपंचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का ।। १ ।। गुरु- परम्परा से जिनवाणी निर्झर सी झरती रही । मुमुक्षुओं को परम मोक्ष का पथ प्रशस्त करती रही ।। किन्तु काल की घड़ी मनुज की स्मरणशक्ति हरती रही । श्री धरसेनाचार्य हृदय में करुण टीस भरती रही ।। द्वादशांग का लोप हुआ तो क्या होगा संसार का । श्रुतपंचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का ।।२ ।। शिष्य भूतबलि पुष्पदन्त की हुई परीक्षा ज्ञान की । जिनवाणी लिपिबद्ध हेतु श्रुत-विद्या विमल प्रदान की ।। ताड़ पत्र पर हुई अवतरित वाणी जनकल्याण की । षट्खण्डागम महाग्रन्थ करणानुयोग जय ज्ञान की ॥ ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी दिवस था सुर नर मंगलाचार का । श्रुतपंचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का ॥ ३ ॥ धन्य भूतबली पुष्पदन्त जय श्री धरसेनाचार्य की । लिपि परम्परा स्थापित करके नई क्रांति साकार की ।। देवों ने पुष्पों की वर्षा नभ से अगणित बार की । धन्य धन्य जिनवाणी माता निज पर भेद विचार की ।। ऋणी रहेगा विश्व तुम्हारे निश्चय का व्यवहार का । श्रुतपंचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का ॥ ४ ॥ धवला टीका वीरसेन कृत बहत्तर हजार श्लोक | जय धवला जिनसेन वीरकृत उत्तम साठ हजार श्लोक ॥। महाधवल है देवसेन कृत है चालीस हजार श्लोक । विजयधवल अरु अतिशय धवल नहीं उपलब्ध एक श्लोक ॥।
जिनेन्द्र अर्चना
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