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दीपमालिका पर्व पूजन
(श्री राजमलजी पवैया कृत) (वीरछन्द)
महावीर निर्वाण दिवस पर, महावीर पूजन कर लूँ । वर्द्धमान अतिवीर वीर, सन्मति प्रभु को वन्दन कर लूँ । पावापुर से मोक्ष गये प्रभु, जिनवर पद अर्चन कर लूँ । जगमग जगमग दिव्यज्योति से, धन्य मनुजजीवन कर लूँ ।। कार्तिक कृष्ण अमावस्या को, शुद्धभाव मन में भर लूँ । दीपमालिका पर्व मनाऊँ, भव-भव के बन्धन हर लूँ ।। ज्ञान-सूर्य का चिर- प्रकाश ले, रत्नत्रय पथ पर बढ़ लूँ ।
परभावों का राग तोड़कर, निजस्वभाव में मैं अड़ लूँ ।।
ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलप्राप्त- श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलप्राप्त-श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलप्राप्त- श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
चिदानन्द चैतन्य अनाकुल, निजस्वभाव मय जल भर लूँ । जन्म-मरण का चक्र मिटाऊँ, भव-भव की पीड़ा हर लूँ ।। दीपावलि के पुण्य दिवस पर, वर्द्धमान पूजन कर लूँ । महावीर अतिवीर वीर, सन्मति प्रभु को वन्दन कर लूँ ।
ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
अमल अखण्ड अतुल अविनाशी, निज चन्दन उर में धर लूँ।
चारों गति का ताप मिटाऊँ, निज पंचमगति आदर लूँ । दीपा. ।। ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।
अजर अमर अक्षय अविक्ल, अनुपम अक्षतपद उर धर लूँ।
भवसागर तर मुक्ति वधू से, मैं पावन परिणय कर लूँ । । दीपा. ।। ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
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जिनेन्द्र अर्चना
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रूप-गन्ध-रस-स्पर्श रहित निज शुद्ध पुष्प मन में भर लूँ।
काम - बाण की व्यथा नाश कर मैं निष्काम रूप धर लूँ । । दीपा. ।। ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
आत्मशक्ति परिपूर्ण शुद्ध नैवेद्य भाव उर में धर लूँ ।
चिर- अतृप्ति का रोग नाशकर, सहज तृप्त निज पद वर लूँ। । दीपा. ।।
ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्ण ज्ञान कैवल्य प्राप्ति हित, ज्ञानदीप ज्योतित कर लूँ । मिथ्या-भ्रम-तम-मोह नाशकर, निज सम्यक्त्व प्राप्त कर लूँ। । दीपा. ।।
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
पुण्यभाव की धूप जलाकर, घाति - अघाति कर्म हर लूँ ।
क्रोध - मान-माया लोभादि, मोह-द्रोह सब क्षय कर लूँ। । दीपा. ।।
ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
अमिट अनन्त अचल अविनश्वर, श्रेष्ठ मोक्षपद उर धर लूँ।
अष्ट स्वगुण से युक्त सिद्धगति, पा सिद्धत्व प्राप्त कर लूँ । । दीपा. ।।
ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
गुण अनन्त प्रकटाऊँ अपने, निज अनर्घ्य पद को वर लूँ । शुद्धस्वभावी ज्ञान - प्रभावी, निज सौन्दर्य प्रकट कर लूँ । । दीपा. ।।
ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जिनेन्द्र अर्चना
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