SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ G OF85 वसुदेव की उपलब्धियाँ शौर्यपुरी नगरी के राजा समुद्रविजय के नौ लघुभ्राता थे। उनमें आठ भाइयों के नवयौवन आने पर यथासमय विवाह कर दिये गये । अनेक कलाओं में निपुण और गुणों से भरपूर ये आठों भाई और उनकी पत्नियाँ परस्पर बड़े स्नेह से रहती थीं, उनमें बेजोड़ प्रेम था । लघुभ्राता कुमार वसुदेव देवों के समान सर्व गुणसम्पन्न और कामदेवों के समान अतिशय रूपवान, अनेक कलाओं में कुशल, व्यवहार में चतुर चंचल चितवन युक्त, बाल सुलभ क्रीड़ायें करते हुए शौर्यपुरी नगरी में यथेष्ट अपना एवं दूसरों का मनोरंजन करते थे। वे अपने रूप-लावण्य, आकर्षक व्यक्तित्व, नाना प्रकार की चतुराई पूर्ण बातों और मन्द-मन्द मुस्कान आदि से हर्ष व्यक्त करने वाले हावभावों से जनता के चित्त को अपनी ओर सहज आकर्षित कर लेते थे। धीर-वीर वसुदेव एकबार ब्राह्मण का वेष धारण कर निःशंक हो पश्चिम दिशा की ओर चल पड़े। योजनों चलते-चलते वे विजयखेट नामक नगर में पहुँचे। वहाँ क्षत्रिय वंशोत्पन्न सुग्रीव नामक एक गंधवाचार्य से परिचय हुआ। संगीतप्रेमी सुग्रीव वसुदेव के बाह्य व्यक्तित्व से ही प्रभावित हो गया। उस सुग्रीव गंधवाचार्य की सोमा और विजयसेना नामक दो सुन्दर कन्यायें थीं, दोनों गंधर्व-विद्या में निपुण थीं। इसकारण उनके पिता गंधवाचार्य को उन पर गौरव था। अत: उसने ऐसा निश्चय कर लिया कि जो इन्हें इस विद्या में जीतेगा वही उनका पति होगा। वसुदेव ने उन दोनों कन्याओं को संगीत प्रतियोगिता में जीता और सुग्रीव ने सन्तुष्ट होकर उन दोनों का विवाह वसुदेव से कर दिया। वसुदेव उनके साथ कुछ समय सुखपूर्वक वहीं रहे । विजयसेना से अंकुर नामक पुत्र हुआ । तदनन्तर वसुदेव उन o_Ev 45 FEBF ३
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy