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हैं। इस गुण की मुख्यता से ही द्रव्य को वस्तु कहते हैं। लोक में प्रत्येक वस्तु अपने-अपने प्रयोजन से युक्त है। कोई भी वस्तु अपने आप में निरर्थक नहीं है और पर के किसी भी प्रयोजन की नहीं है। एक वस्तु को दूसरी वस्तु के सहयोग की आवश्यकता नहीं; क्योंकि सभी वस्तुओं में अपना-अपना स्वतन्त्र वस्तुत्व गुण विद्यमान है।" | सुनो! तीसरा सामान्य गुण द्रव्यत्व गुण है - जिस शक्ति के कारण द्रव्य की अवस्था निरन्तर बदलती रहे, उसे द्रव्यत्व गुण कहते हैं। इसी की मुख्यता से वस्तुओं को द्रव्य संज्ञा प्राप्त है।
इस गुण की प्रमुख विशेषता यह है कि - परद्रव्य के सहयोग की अपेक्षा बिना ही यह गुण वस्तु को स्वतंत्र रूप से निरन्तर परिणमनशील रखता है। अत: एक द्रव्य में होने वाले सतत् परिवर्तन का कारण कोई अन्य द्रव्य नहीं है। किसी भी द्रव्य को अपने परिणमन में किसी अन्य द्रव्य या गुण की आवश्यकता नहीं
४. जिस शक्ति के कारण द्रव्य किसी न किसी ज्ञान का विषय बने, उसे प्रमेयत्व गुण कहते हैं।
इस गुण के कारण प्रत्येक द्रव्य अवश्य ही जाना जा सकता है। इस जगत में कोई भी पदार्थ ऐसा नहीं | है जो अज्ञात रहे; क्योंकि प्रत्येक पदार्थ में प्रमेयत्व गुण पाया जाता है।
“आत्मा भी एक वस्तु है, उसमें भी प्रमेयत्व गुण है, अत: वह भी जाना जा सकता है। बस, थोड़ासा पर व पर्याय पर से उपयोग हटाकर आत्मा की ओर अन्तर्मुख करने की देर है कि समझ लो आत्मा का दर्शन हो गया, सम्यग्दर्शन हो गया।
आत्मा कितना ही सूक्ष्म क्यों न हो, उसमें प्रमेयत्व गुण है न ? जिसमें प्रमेयत्वगुण है, वह भले सूक्ष्म हो तो भी ज्ञान की पकड़ में आता ही है।"
५. जिस शक्ति के कारण द्रव्य में द्रव्यपना कायम रहता है, एकद्रव्य दूसरे द्रव्यरूप नहीं होता, एक गुण दूसरे गुणरूप नहीं होता और द्रव्य में रहनेवाले अनन्त गुण बिखर कर अलग-अलग नहीं होते, उसे अगुरुलघुत्वगुण कहते हैं।
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