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"देखो ! वस्तुस्वातन्त्र्य एक ऐसा महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है कि जिसके बिना धर्म की कल्पना ही नहीं की | जा सकती।"
अस्तु सुनो ! प्रत्येक द्रव्य में दो प्रकार के गुण होते हैं - एक सामान्य और दूसरा विशेष । जो गुण सभी द्रव्यों में रहते हैं, उन्हें सामान्य गुण कहते हैं। जैसे - अस्तित्व गुण सब द्रव्यों में पाया जाता है। अत: यह | सामान्य गुण हुआ। वस्तुत्वगुण भी उन्हीं सामान्य गुणों में से एक गुण है तथा जो गुण सब द्रव्यों में न रहकर
अपने-अपने द्रव्यों में रहते हैं, उन्हें विशेष गुण कहते हैं। जैसे - ज्ञान, दर्शन गुण केवल आत्मा में ही होते हैं, अन्य पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश व काल द्रव्य में नहीं; अत: ये जीव द्रव्य के विशेष गुण हैं। इसीतरह पुद्गल द्रव्य में रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, धर्मद्रव्य में गतिहेतुत्व, अधर्मद्रव्य में स्थितिहेतुत्व, आकाशद्रव्य में अवगाहनहेतुत्व और कालद्रव्य में परिणमनहेतुत्व - विशेष गुण हैं।" ___ “वैसे तो प्रत्येक द्रव्य में अनन्त गुण हैं, सामान्य गुण भी अनेक हैं, परन्तु उनमें छह मुख्य हैं - अस्तित्व, | वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व और प्रदेशत्व ।
१. जिस शक्ति के कारण द्रव्य का कभी भी अभाव नहीं होता, उसे अस्तित्व गुण कहते हैं। प्रत्येक द्रव्य में यह अस्तित्व गुण है, अत: प्रत्येक द्रव्य की सत्ता स्वयं से है, उसे किसी ने बनाया नहीं है और न कोई उसे मिटा सकता है; क्योंकि वह अनादि-अनन्त है।
इसी अस्तित्व गुण की अपेक्षा से द्रव्य का लक्षण सत् किया जाता है। देखो ! सत् का कभी विनाश नहीं होता और असत् का कभी उत्पाद नहीं होता। मात्र पर्याय पलटती है।
इस अस्तित्व गुण के यथार्थ ज्ञान-श्रद्धान से जीव मृत्युभय से तो मुक्त हो ही जाता है, कर्ताबुद्धि के अगणित दोषों से भी बच जाता है।" किसी ने ठीक ही कहा है -
"कर्ता जगत का मानता जो कर्म या भगवान को।
वह भूलता है लोक में अस्तित्व गुण के ज्ञान को।।" ॥ २. "जिस शक्ति के कारण द्रव्य में अर्थक्रियारित्व अर्थात् प्रयोजनभूत क्रिया हो; उसे वस्तुत्व गुण कहते || २७