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________________ के स्वामी देव से चन्दन की मालायें, फूलों के छत्र और फूलों की शैया प्राप्त की। उसके बाद जयन्त गिरि || पर वर्तमान दुर्जय नामक वन में गया, वहाँ से विद्याधर वायु की पुत्री रति लेकर लौटा। इसप्रकार प्रद्युम्नकुमार को इन सोलह स्थानों में जहाँ पाँच सौ पुत्रों ने उसे मारने की खोटी भावना से भेजा था, वहीं से उसे अनेक महालाभों की प्राप्ति हुई, जिसे देखकर कालसंवर के ५०० पुत्र आश्चर्यचकित | रह गये और पुण्य का माहात्म्य समझ कर वे संतोष की सांस लेते हुए प्रद्युम्न के साथ अपने मेघकूट नगर || में वापस आ गये। । नगर में पहुँचते ही प्रद्युम्न ने धर्मपिता कालसंवर को नमस्कार किया। कांतिमय युवा प्रद्युम्नकुमार को श्रेष्ठ वेष में रथ पर बैठा देख धर्ममाता कनकमाला किसी दूसरे ही भाव को प्राप्त हो गई, वह उसके रूपलावण्य पर मोहित हो गई। रथ से नीचे उतर कर नम्रीभूत हुए प्रद्युम्न की कनकमाला ने बहुत प्रशंसा की, उसका मस्तक सूंघा, उसे पास में बैठाया और कोमल हाथ से उसका स्पर्श किया। मोह का तीव्र उदय होने से कनकमाला गोद लिए पुत्र प्रद्युम्न पर ऐसी मोहित हुई कि उसके मन में काम-भोग जैसे खोटे विचार उठने लगे। प्रद्युम्न यह बात कभी स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था; क्योंकि वह तो कनकमाला को माँ ही जानता || था। उसे तो अभी तक यह भी ज्ञात नहीं था कि वह इनके यहाँ कैसे आया और उसकी असली माँ कौन है ? अत: वह कनकमाला को प्रणाम कर तथा इससे आशीर्वाद लेकर अपने आवास पर चला गया। उधर प्रद्युम्न के आलिंगनजन्य सुख को प्राप्त करने की तीव्र लालसा से वह विद्याधरी कनकमाला काम की पीड़ा से पीड़ित होकर सब सुध-बुध भूल गई, अस्वस्थ हो गई। अस्वस्थ होने का समाचार पाकर प्रद्युम्न जब उसे देखने गया तो देखता है कि कनकमाला कमलिनी के पत्तों की शैय्या पर पड़ी हुई बहुत व्याकुल हो रही है। प्रद्युम्न ने उससे अस्वस्थता का कारण पूछा तो उसने शारीरिक और वाचनिक कामुक चेष्टाओं से अपना अभिप्राय प्रगट कर दिया। प्रद्युम्न ने परिणामों की विचित्रता और कर्मों की विडम्बना पर विचार किया कि माता की पुत्र के प्रति भी ऐसी परिणति हो सकती है ? यह तो कल्पना करना भी दुःखद है। अत: उसने कनकमाला को अपने
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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