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| करने के लिए भेजा, किन्तु सिंहरथ ने उन सभी ५०० पुत्रों को पराजित कर दिया। अन्त में प्रद्युम्न ने उस ॥ ५०० पुत्रों को हरानेवाले सिंहस्थ को जीत लिया। प्रद्युम्न के पराक्रम को देख कालसंवर तो प्रसन्न हुआ; | परन्तु वे ५०० पुत्र अपनी हीन वृत्ति के कारण प्रद्युम्न जैसे पुण्यवान और पराक्रमी पुरुष से ईर्ष्या करने लगे और प्रद्युम्न को मार डालने की योजना बनाने लगे।
एक बार वे सब प्रद्युम्न को सिद्धायतन के गोपुर के समीप ले गये और छल से उसे ऐसे खतरनाक स्थानों | पर भेजने को प्रेरित करने लगे, जहाँ से जिन्दा लौटना उन्हें संभव नहीं लगता था। सर्वप्रथम प्रद्युम्न को उस गोपुर के अग्रभाग पर चढ़ने को कहा, जहाँ से दुर्लभ विद्यायें प्राप्त करके लानी थीं। प्रद्युम्न वेग से गोपुर के अग्रभाग पर चढ़ गया तथा वहाँ के देव से सचमुच विद्याओं का खजाना एवं मुकुट ले आया।
पुन: उनके कहने पर वह महाकाल गुफा में घुस गया तो वहाँ से भी तलवार, ढाल, छत्र, चमर लेकर लौटा। वहाँ से उन लोगों ने नाग गुफा में जाने को प्रेरित किया, वहाँ से भी देवों द्वारा प्रदत्त पादपीठ, नागशैय्या, आसन, वीणा तथा भवन वाली विद्यायें ले आया। वापिका में गया तो वहाँ भी युद्ध में जीते हुए देव से मकर चिह्न से चिह्नित ध्वजा प्राप्त कर निकला। तदनन्तर अग्निकुण्ड में प्रविष्ट हुआ, वहाँ से अग्नि | द्वारा शुद्ध किए हुए दो शस्त्र लेकर आया । मेषाकृति पर्वत में प्रवेश कर कानों के दो कुण्डल ले आया। पाण्डुक वन में प्रवेश कर वहाँ के निवासीदेव से मुकुट एवं अमृतमयी माला लेकर लौटा । कपित्थ नामक वन में गया तो वहाँ के देव से विद्यामय हाथी ले आया। वाल्मीकि वन में प्रवेश कर वहाँ के निवासी देव से छुरी-कवच-मुद्रिका आदि ले आया। शाख नामक पर्वत में गया, वहाँ के निवासी देवों से कटिसूत्र, कवच, कड़ा, बाजूबंद और कंठाभरण प्राप्त किए। सूकर नामक वन में गया और वहाँ से शंख व धनुष प्राप्त किए। मनोवेग विद्याधर से हार और इन्द्रजाल प्राप्त किया तथा मनोवेग और वसन्त विद्याधर की मित्रता करा दी, उससे एक कन्या एवं नरेन्द्र जाल प्राप्त किया। एक भवन में प्रवेश करने से उसके अधिपति से पुष्पमय धनुष, संताप और शोक को उत्पन्न करनेवाले बाण प्राप्त किये। तत्पश्चात् एक ऐसी नाग गुहा में गया जहाँ || २२
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