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________________ Sn श्रीकृष्ण ने कहा - "प्रिये चिन्ता मत करो ! ऐसा ही होगा" - ऐसा आश्वासन देते हुए श्रीकृष्ण ने | श्री | सेना की ओर अपना रथ आगे बढ़ा दिया। रोष से भरे कृष्ण एवं बलभद्र के बाणों से मुठभेड़ करती हुई शत्रु की सेना चारों ओर भागकर तितरबितर हो गई, नष्ट हो गई। इसकारण शत्रुपक्ष का सारा अहंकार नष्ट हो गया। भयंकर युद्ध में सिंह के समान शूरवीर कृष्ण ने शिशुपाल का मस्तक छेद दिया और बलदेव ने भीष्म पुत्र राजा रुक्मि को ऐसा जर्जर कर दिया कि प्राण ही शेष रह गये। F85 | वहाँ से चलकर श्रीकृष्ण ने गिरनार पर्वत पर रुक्मणी के साथ विधिवत् विवाह किया और उसके बाद भाई बलदेव के साथ द्वारिकापुरी में प्रवेश किया। वहाँ श्रीकृष्ण और रुक्मणी अपने नवीन दाम्पत्य सुख को भोगते हुए सुख से रहने लगे। वस्तुओं के अनुसार ज्ञान नहीं होता, बल्कि अपने इन्द्रिय ज्ञान की योग्यतानुसार ही वस्तुएँ जानी जाती हैं। इसे ही शास्त्रीय भाषा में ऐसा कहा गया है कि - ज्ञेयों के अनुसार ज्ञान नहीं होता, बल्कि अपने-अपने प्रगट ज्ञान पर्याय की योग्यता के अनुसार ज्ञेय जाने जाते हैं अर्थात् जिसकी ज्ञान पर्याय में जिस समय जिस पदार्थ को जिस रूप में जानने की योग्यता होती है, वह ज्ञान उसी पदार्थ को उसी रूप में ही जानता है। - इन भावों का फल
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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