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१७०॥ ऐसा कौन अज्ञानी होगा जो भयंकर ज्वालाओं को धारण करनेवाली अग्नि का हाथ से स्पर्श करेगा? ह | ऐसा कौन बलवान है जो जीतने की इच्छा से तीर्थंकर, बलभद्र और नारायण का सामना करेगा? फिर भी
जरासंध दुस्साहस कर रहा है, निःसंदेह जब सियार की मौत आती है तो वह शहर की ओर ही भागता है। यह राजा जरासंध प्रतिनारायण है और इसके मारनेवाले ये बलभद्र तथा नारायण यहाँ उत्पन्न हो चुके हैं। इसलिए इसकी युद्ध करने की बुद्धि हो रही है। फिर भी जब तक यह प्रतिनारायण रूपी पतंगा कृष्णरूपी अग्नि में स्वयं आकर भस्म नहीं हो जाता, तब तक हम लोगों को शीघ्र ही पश्चिम दिशा का आश्रय कर कुछ दिनों तक छुपकर चुप बैठे रहना उचित है, ऐसा करने से निःसंदेह कार्य की सिद्धि होगी।
यह जरासंध माता और भाई अपराजित के वध से उत्पन्न पराभव से क्रोध में है और हम लोगों का सामना करने को उद्धत हो रहा है।
यद्यपि हम लोग चुप रहेंगे; फिर भी जरासंध हमारा सामना करेगा तो हम युद्ध द्वारा उसका सत्कार कर उसे यमराज के पास भेज देंगे। ___इसप्रकार परस्पर सलाह कर उन वृद्धजनों ने यह मंत्रणा अपने कटक में प्रगट की और भेरी के शब्द से नगर में प्रस्थान करने की सूचना दे दी । भेरी की आवाज (ध्वनि) सुनकर यादव और भोजवंशी राजाओं की चतुरंग सेना अज्ञातवास के लिए चल पड़ी।
मथुरा, शौर्यपुर और वीर्यपुर की प्रजा ने भी स्वामी के अनुराग से साथ ही प्रस्थान कर दिया । उस समय अपरिमित धन सहित अठारह कोटि यादव शौर्यपुर से निकले थे। उत्तम तिथि नक्षत्र देख वे राजागण जब पश्चिम दिशा की ओर जा रहे थे तो मार्ग में उस विंध्याचल पर्वत के पास से गुजरे जहाँ हाथियों और सिंहों के झुण्ड क्रीड़ा करते हैं। ___ 'मार्ग में पीछे-पीछे जरासंध आ रहा है' यह सुनकर अत्यधिक उत्साह से भरे यादव लोग भी युद्ध के लिए | तैयार हो उसकी प्रतीक्षा करने लगे। उन दोनों की सेनाओं के बीच थोड़ा अन्तर देखकर भाग्य के नियोग से || १७