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तीसरा स्वप्न बताता है कि 'वह तीर्थंकर पद का धारक अनन्त वीर्य का धारक एवं धीर-वीर गंभीर ह || होगा और अन्त में तपोवन जाकर दीक्षा लेकर कठिन तपश्चरण करेगा।'
चौथे स्वप्न का फल यह है कि 'जन्म लेते ही सुरेन्द्र तेरे पुत्र को सुमेरु पर्वत पर ले जाकर क्षीर-सागर || के (निर्जन्तुक निर्मल) जल से जन्माभिषेक करेंगे तथा वह पर्वत के समान स्थिर होगा।'
पाँचवें में 'मालाओं का देखना यह सूचित करता है कि वह पुत्र तीनों जगत में व्याप्त यश से सहित होगा। अनन्तज्ञान एवं अनन्त दर्शन रूपदृष्टि द्वारा समस्त लोकालोक को व्याप्त करेगा।'
छठवें में 'चन्द्रमा के देखने का फल यह है कि वह जिनेन्द्रचन्द्र दयारूपी चन्द्रिका से अत्यधिक सुन्दर होगा।'
सातवें में सूर्य का देखना यह सूचित करता है कि तेरा पुत्र तेज का पुंज होगा और अपने तेज द्वारा समस्त तेजस्वीजनों के तेज को जीत कर तीनों लोकों को अंधकार से रहित करेगा।' ___आठवें स्वप्न में दो युगल मछलियों का देखना यह सूचित करता है कि - लौकिक सुख के साथ अतीन्द्रिय आनन्दमयी मोक्ष सुख को प्राप्त करेगा।'
नवमें स्वप्न में 'सुवर्ण कलशों का युगल देखना इसका प्रतीक है कि तुम्हारा पुत्र जगत के मनोरथों का पूर्ण करनेवाला होगा और उसके पुण्य के प्रभाव से यह घर निधियों से परिपूर्ण हो जायेगा।'
दसवें स्वप्न में 'कमलों से सुशोभित सरोवर का स्वप्न तृष्णा रहित पुत्र के उत्तम लक्षणों का प्रतीक है।'
ग्यारहवें स्वप्न से यह सूचित होता है कि - 'तुम्हारा पुत्र समुद्र के समान गंभीर बुद्धि का धारक होगा तथा उपदेश देकर जगत के जीवों को कीर्तिरूपी महानदियों से परिपूर्ण श्रुतज्ञानरूपी अमृत का पान करायेगा।'
बारहवें रत्नजड़ित सिंहासन को देखने से यह प्रगट होता है कि - तुम्हारे पुत्र की आज्ञा सर्वोपरि होगी और लगातार सम्मान को प्राप्त देव-दानवों के चित्रामों से अंकित उत्तम सिंहासन पर आरूढ़ होगा।' ॥१६
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