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________________ 4 तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ के जीव के स्वर्गावतरण से छह माह पहले से लेकर जन्म पर्यन्त पन्द्रह माह तक कुबेर ने इन्द्र की आज्ञा से राजा समुद्रविजय के घर धन की वर्षा की। वह धन की धारा प्रतिदिन तीन बार साढ़े तीन करोड़ रत्नों के रूप में होती थी- ऐसा आगम में उल्लेख है। आगम में यह भी लिखा है कि इस धन से याचक या दीन-हीन, दीन-दुःखी प्राणी धनाभाव की पूर्ति कर सन्तुष्ट हो जाते थे। इससे यह तो स्पष्ट है ही कि तीर्थंकर जैसे पुण्यवान एवं पवित्र आत्मा जब जगत में जन्म लेते हैं, अवतरित होते हैं तो उनके निमित्त से और धनहीनों के भाग्योदय से नगर में सहज सम्पन्नता हो जाती है - तीर्थंकर जीव के सातिशय पुण्य का ऐसा ही प्रभाव होता है, अत: ऐसे कथनों में शंका करने की ऐसी कोई गुजांइश नहीं है कि 'रत्नों की वर्षा में वे देवों द्वारा बरसाये रत्न कैसे होंगे ? उनका मार्केट में क्या मूल्य होगा?' यह शब्द समृद्धि का प्रतीक भी तो हो सकता है। जैसे लोक में अनाजों की फसलों की आवश्यकतानुसार जब अनुकूल जलवर्षा होती है तो लोग कहते हैं कि यह पानी नहीं सोना बरस रहा है। इससे कोई ऐसा नहीं मानता कि ओलों की भांति स्वर्ण के कण बरसते होंगे और लोग लूटते-फिरते होंगे, झगड़ते होंगे। ___ अत: ऐसे अतिशयों की जहाँ-जहाँ चर्चा आई है, उन्हें समृद्धि का प्रतीक मानकर भी तो अपनी श्रद्धा कायम रखी जा सकती है। जैनेतर धर्मग्रन्थों एवं साहित्य के क्षेत्र में अतिशयोक्ति, अन्योक्ति आदि अलंकारों की भाषा में भी तो सारी दुनिया श्रद्धा रखती ही है न! तथा देवों की सामर्थ्य असीमित होती है, अत: रत्नों की वर्षा जैसे कथनों में अश्रद्धा को कोई स्थान ही नहीं है। जैनदर्शन की ९० प्रतिशत बातें तो आज भी विज्ञान की कसौटी पर खरी उतर रही हैं तथा वैज्ञानिक नवीन अनुसंधानों में भी जैनदर्शन के सूक्ष्म भौतिक कथनों का भारी योगदान है। यह बात वैज्ञानिक भी मानते हैं। ॥ १६ FEEER
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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