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१५३|| गरम उच्छ्वास छोड़ने लगा। मानो उसे साँप सूंघ गया हो। पर वह अभी भी निराश नहीं हुआ। कृष्ण को |
खत्म करने का उसका अगला कदम था - "कृष्ण सहित सभी गोप मल्लयुद्ध के लिए तत्काल तैयार हो जायें।"
एतदर्थ कंस ने भी मल्लयुद्ध के लिए अपने बड़े-बड़े मल्लों को बुला लिया। स्थिर बुद्धि के धारक वीर | वसुदेव ने शत्रु कंस की इस कुचेष्टा को तत्काल समझ लिया और उन्होंने अपने सब भाइयों को यह बात बतलाने तथा उन्हें शीघ्र ही मथुरा में उपस्थित होने के लिए खबर भेज दी। कंस के अभिप्राय को समझने वाले वसुदेव के नौ भाई समाचार पाते ही रथ घोड़े और मन्दोन्मत्त हाथियों से युक्त अपनी सेनाओं के द्वारा पृथ्वी को रौंधते हुए मथुरा की ओर चल पड़े।
यदुवंशी राजाओं की विशाल सेना को मथुरानगरी की ओर आया देख यद्यपि कंस सशंकित था तथापि जब उसे यह बताया गया कि ये चिरकाल से वियुक्त अपने छोटे भाई वसुदेव को देखने के लिए आये हैं, तब कंस ने निःशंक हो सामने जाकर उन सबका स्वागत किया और छोटे भाइयों सहित उन समस्त भाइयों का नगर में प्रवेश कराया तथा रहने हेतु उत्तमोत्तम भवन प्रदान किए। कपटी कंस दान, सम्मान द्वारा प्रतिदिन उनकी सेवा करता था । यद्यपि वह बाह्य में ऐसा अनुकूल व्यवहार दिखा रहा था, परन्तु उसके अन्तरंग में उन सबके प्रति अत्यन्त वैरभाव था।
एक दिन अत्यन्त विज्ञ, निपुणमति, कृष्ण के हृदय में युद्ध की ज्वाला जगाने वाले, धीर-वीर बलभद्र ने गोकुल जाकर यशोदा को कृष्ण के सामने ही ऐसे कटुक वचन कह दिए, जो पहले कभी नहीं कहे थे, इसकारण वह बहुत ही चकित और भयभीत हो गई। यद्यपि उसने प्रत्युत्तर में कहा कुछ भी नहीं; किन्तु उसके नेत्र सजल हो गये। आँखों से अश्रुधारा फूट पड़ी। वह चुपचाप शीघ्र ही स्नान कर भोजन बनाने के लिए अवसरानुकूल प्रयत्न करने लगी। इधर कृष्ण और बलदेव - दोनों स्नान करने के लिए नदी चले गये।