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________________ यद्यपि कंस श्रीकृष्ण की अलौकिक चेष्टाओं से और उनके बल-पौरुष से परिचित हो चुका था, तथापि उनको नष्ट करने में अपनी अकल लगाने वाले कंस ने श्रीकृष्ण एवं गोपों को कमल लाने के लिए यमुना नदी के उस तालाब में भेजा जहाँ भयंकर काले नाग रहते थे। अपनी भुजाओं के बल और दृढ़ आत्मविश्वास से श्रीकृष्ण सहज ही उस तालाब में घुस गये। श्रीकृष्ण के अन्दर प्रवेश करते ही महा भयंकर कालिया नाग क्रोधित होकर फुकारता हुआ सामने आ गया। उस काले नाग के फण पर जो मणियाँ थीं, उनसे वह ऐसा लगता था मानों आग के अंगारे उगल रहा हो। यद्यपि वह नाग जिस पर भी फुकार करता वह प्राणी तत्काल ही प्राण छोड़ देता; परन्तु ऐसे भयंकर नाग का भी श्रीकृष्ण ने उसी समय मर्दन कर डाला। उसे निर्विष कर दिया। उनके साथी शेष गोप और बलभद्र जो डर के मारे यमुना नदी के किनारे पेड़ों पर छुपकर बैठ गये थे, उन्होंने श्रीकृष्ण की जो जय-जयकार की, उससे वहाँ का सारा वातावरण गूंज गया और कृष्ण का शरीर हर्ष से रोमांचित हो गया और वे शीघ्र ही वांछित कमल तोड़कर यमुना के किनारे तालाब के तट पर आ गये। देदीप्यमान श्रीकृष्ण ज्यों ही तालाब के बाहर निकले त्यों ही आनंद से विवश बलभद्र ने दोनों भुजाओं से उनका आलिंगन किया। __ संतो ने ठीक ही कहा है 'पुण्यवान पुरुष जहाँ भी जायेगा सफलता उसके चरण ही चूमेगी।' यदि हम | पुण्यकार्य करें तो सफलता हमारे भी चरण चूमेगी। ___ गोपालों के द्वारा लाकर सामने रखे हुए कमलों को देखकर कंस की छाती पर साँप लोट गये, वह गरम- ॥१५
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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