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________________ जानकर खोजने के लिए वह गोकुल आया। माता यशोदा ने किसी उपाय से उन्हें आत्मीय जनों के साथ नगर के बाहर ब्रज भेज दिया। कंस को जब कृष्ण गोकुल में नहीं मिले तो वह वापस मथुरा आ गया। जब वह मथुरा लौटा तभी उसके यहाँ सिंहवाहिनी नागशय्या, अजितंजय नामक धनुष और पाँचजन्य नामक शंख प्रगट हुए। कंस के ज्योतिषी ने बताया कि - 'जो कोई सिंहवाहिनी नागशय्या पर चढ़कर अजितंजय नामक धनुष पर डोरी चढ़ा दे और पाँचजन्य शंख को फूंक दे, वही तुम्हारा शत्रु है।' ज्योतिषी के कहे अनुसार कार्य करनेवाले कंस ने अपने शत्रु की तलाश करने के लिए आत्मीय जनों द्वारा नगर में उक्त घोषणा करा दी। साथ ही कहा कि - जो उक्त तीनों काम करेगा वह सर्वश्रेष्ठ पराक्रमी समझा जायेगा तथा उसे कंस अलभ्य इष्टवस्तु देगा। ___कंस की यह घोषणा सुनकर अनेक राजा मथुरा आये परन्तु कोई सफल नहीं हुआ। एक दिन कंस की पत्नी जीवद्यशा का भाई भानु किसी काम से गोकुल गया। वहाँ कृष्ण का अद्भुत स्वरूप देखकर प्रसन्न हुआ और उन्हें मथुरा ले गया। मथुरा में श्रीकृष्ण उस सिंहवाहनी नागशय्या पर सामान्य शय्या के समान चढ़ गये। तदनन्तर उन्होंने सांपों के द्वारा उगले हुए जहरीले धूम को बिखेरनेवाले धनुष को प्रत्यंचा पर चढ़ा दिया और शब्दों से समस्त दिशाओं को भरनेवाले शंख को खेदरहित होकर फूंक दिया। उस समय कृष्ण के प्रगट होते हुए लोकोत्तर माहात्म्य को देखकर समस्त लोगों ने घोषणा की कि अहो ! क्षुभित समुद्र के समान शब्द करनेवाला यह कोई महान पुरुष है। कृष्ण का यह पराक्रम देख बड़े भाई बलदेव को दुष्ट कंस से आंशका हो गई, अत: उन्होंने कृष्ण को अकेला नहीं जाने दिया। लोगों से कहा कि कृष्ण बहुत गुणी हैं, अत: इनको सम्मान सहित भेजने जाओ। वस्तुत: बात यह है कि जिसने पूर्व जन्म में जिनधर्म की आराधना कर पुण्यार्जन किया है, उसका बड़े से बड़ा शक्तिशाली शत्रु भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। Tv 0 416 EME FOR ENE
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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