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________________ १५४ ह रि वं श क 55 था एकान्त में बलभद्र ने कृष्ण से कहा कि :- "आज तुम्हारा यह मुख कमल तुषार से कुम्हलायें कमल की भाँति मुरझाया हुआ क्यों है ? श्रीकृष्ण ने कहा- मुझे इस बात का अफसोस है कि जब आप लोग उनके मनोविज्ञान से भी सुपरिचित हैं; फिर भी आपने हमारी पूज्य माता यशोदा का तिरस्कार क्यों किया?" श्री बलदेव ने स्नेहवश प्रत्युत्तर में कृष्ण को गले लगाते हुए दोनों भुजाओं से गाढ़ आलिंगन किया और अविरल अश्रुधारा से हृदय की स्वच्छ वृत्ति को अभिव्यक्त करते हुए कृष्ण से कंस की दुष्ट प्रवृत्तियों का वह सब वृत्तान्त कहा, जो देवकी के साथ घटित हुआ था। तुम वस्तुतः देवकी के उदर से उत्पन्न हुए हो और | यशोदा के घर में गुप्तरूप पले और बड़े हुए हो । संयोग से नौ माह के बजाय सात माह में ही तुम्हारा प्रसव हो गया था, इसकारण कंस को देवकी की प्रसूति का जब तक पता लगा, उसके पहले ही हम लोगों ने तुम्हें | यशोदा के पास सुरक्षित पहुँचा दिया था और तुम्हारे बदले यशोदा के उदर से उत्पन्न कन्या देवकी के प्रसूतिगृह में पहुँचा दी थी। तुम्हारे छह बड़े भाइयों की रक्षा भी इसी प्रकार देवियों द्वारा की गई है। इस तरह मृत्यु भय से भयभीत कंस अपनी समझ से देवकी से उत्पन्न सभी संतानों को नष्ट करके अपने जीवन की सुरक्षा समझ कर निश्चिन्त हो गया है। अब उससे प्रतिकार का अवसर आ गया है। अतः किसी भी तरह विलम्ब नहीं करना है । यशोदा द्वारा विलम्ब होते देख मुझे क्रोध आ गया था । कंस की व्यथा-कथा सुन कर श्रीकृष्ण के हृदय में प्रतिशोध की ज्वाला जलने लगी। बस, यही बलदेव चाहते थे । कंस को जैनदर्शन के वस्तुस्वातंत्र्य के सिद्धान्त का विश्वास नहीं था, वस्तुत: उसका अज्ञान ही उसकी आकुलता का कारण था, इसे न जानकर भ्रूण हत्या जैसे महापाप कार्य में वह प्रवृत्त हुआ। युद्ध में आत्मरक्षा के लिए आमने-सामने लड़ना अलग बात है, वह विरोधी हिंसा है और मृत्यु के भय से भ्रूण हत्यायें कराना | बिल्कुल अलग बात है, यह संकल्पी हिंसा है। इन दोनों में जमीन-आसमान का महान अन्तर है । ष्ण ए वं स में घ र्ष १५
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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