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कुमार वसुदेव को जब यह ज्ञात हुआ कि हरिवंश में तीर्थंकर भगवान का जन्म होनेवाला है तो उनके हर्ष का ठिकाना न रहा । वे अत्यधिक प्रसन्न हुए । उन्होंने अवधिज्ञानी अतिमुक्तक मुनिराज से प्रश्न किया - महाराज ! यह भी बताने की कृपा करें कि हरिवंश के तिलक जिनेन्द्र भगवान नेमिनाथ कहाँ से, कैसे अवतरित होंगे? मैं उनका संक्षिप्त चरित्र भी सुनना चाहता हूँ ।"
वसुदेव की जिज्ञासा शान्त करते हुए मुनिराज ने कहा - भावी तीर्थंकर नेमिनाथ की पर्याय में आने के पाँच भव पूर्व यही तीर्थंकर का जीव विदेह क्षेत्र में राजा अर्हद्दास के घर जिनदत्ता रानी की कूंख से | उत्पन्न अपराजित नामक राजकुमार था। वह किसी के द्वारा भी पराजित न होता हुआ अपने नाम को सार्थक कर रहा था । यौवन आने पर प्रीति नाम की सर्व गुणसम्पन्न कन्या से उसका विवाह हुआ।
एक दिन राजा अर्हद्दास देवों द्वारा वन्दनीय भगवान विमलवाहन की वन्दनार्थ अपने पुत्र अपराजित सहित गया। भगवान के धर्मोपदेश से प्रभावित होकर राजा अर्हद्दास ने अपने अधीनस्थ पाँच सौ राजाओं के साथ भगवान विमलवाहन के समीप जिनदीक्षा ले ली। पिता के दीक्षा के बाद युवराज अपराजित ने राज्यपद तो संभाला; पर साथ ही उन्हें भी भगवान के दिव्य उपदेश के फलस्वरूप सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो गई ।
एक दिन अपराजित ने सुना कि गन्धमादन पर्वत पर जिनेन्द्र विमलवाहन और पिता अर्हद्दास को मोक्ष प्राप्त हो गया है। यह सुनकर उसने तीन दिन का उपवास कर निर्वाण भक्ति की ।
एक बार राजा अपराजित कुबेर के द्वारा समर्पित जिनप्रतिमा एवं चैत्यालय में विराजमान अर्हत प्रतिमा की पूजा कर उपवास का नियम लेकर मन्दिर में स्त्रियों के लिए धर्मोपदेश कर रहा था। उसीसमय दो चारण | ऋद्धिधारी मुनिराज आकाश से नीचे उतरे। राजा अपराजित ने वन्दन कर उनसे पूछा - "हे नाथ ! वैसे तो
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