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(१३९|| के व्रत ले लिये।
तत्पश्चात् घोर तप के भार को धारण करनेवाले सातों मुनिराज आयु के अन्त में समाधिमरण कर सौधर्म स्वर्ग में एक सागर की आयु वाले त्रायस्त्रिंश नामक उत्तम देव हुए।
रेवती धाय पुन: मनुष्य पर्याय प्राप्त कर सुदृष्टि सेठ की अलका नामक पत्नी हुई। गंग आदि छह पुत्रों के जीव युगलिया रूप से देवकी की कूँख से उत्पन्न पुत्रों को इन्द्र का 'हारी' नाम का देव उत्पन्न होते ही कंस से सुरक्षा हेतु अलका सेठानी के पास भेज देगा। वहीं वे युवा होंगे। उनमें बड़ा पुत्र-नृपदत्त, दूसरा-देवपाल, तीसरा-अनीकदत्त, चौथा-अनीकपाल, पाँचवाँ शत्रुघ्न और छठा-जितशत्रु नाम से प्रसिद्ध होगा। ये सभी समानरूप से सुन्दर-सुभग होंगे तथा सदृश रूप के धारक होंगे। ये सभी कुमार हरिवंश के चन्द्र और तीन जगत के गुरु भगवान नेमिनाथ की शिष्यता प्राप्त कर मुक्त होंगे। देवकी के गर्भ से उनका सातवाँ धीर-वीर पुत्र इसी भरत क्षेत्र का नौवाँ नारायण कृष्ण होगा।
कालज्ञ अर्थात् अवसर को पहचानने वाले अवधिज्ञानी मुनिराज से कंस के पूर्वभव तथा उसके पुण्योदय से प्राप्त अभ्यदुय को सुनकर वसुदेव ने मित्रता तो पूर्ववत् बनाकर रखी, किन्तु मन में उसके प्रति उपेक्षा का भाव आ गया।
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