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हम कभी सोच भी नहीं सकते कि अपने द्वारा किए शुभाशुभ भावों का फल किन-किन रूपों में सामने आता है। जगत के जीव कभी आसमान में उड़ते नजर आते हैं तो कभी धरती की धूल चाटते दिखाई देते हैं।
हुए।
कुमार वसुदेव के प्रियंगुसुन्दरी आदि अनेक सुन्दरतम राजकन्याओं के साथ अनेक विवाह' साथ चिरकाल तक रहकर कुमार वसुदेव ने लौकिक सुख का अनुभव किया। स्वयंवर में जीतकर अपहृत की गई सोमश्री से पुनर्मिलन हुआ। गांधार नरेश की पुत्री प्रभावती से विवाह किया।
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पुण्योदय से प्राप्त इन सब अनुकूलताओं के बीच समय-समय पर ऐसा पापोदय भी आया कि शत्रुओं | द्वारा अनेक कष्ट दिए गए। सूर्पक द्वारा स्वयं वसुदेव का अपहरण हो गया और उसे गंगा नदी में गिरा दिया गया।
पुनः पुण्योदय से वह गंगा नदी से निकलकर तापसों के उस आश्रम में पहुँच गया जहाँ जरासंघ ने अपनी | पुत्री केतुमती को तापसों की शरण में रख छोड़ा था; क्योंकि केतुमती किसी पिशाच द्वारा पागल कर दी गई थी तथा जरासंध को उस व्यक्ति की तलाश भी थी, जो इस पिशाच का निग्रह करेगा। कुमार वसुदेव | दयालु तो थे ही, उन्हें केतुमती पर दया आ गई और उन्होंने पिशाच का निग्रह करके केतुमती का पागलपन ठीक कर दिया।
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कहावत तो ऐसी है कि 'कर भला तो हो भला' परन्तु यदि पुराना पाप आड़े आ जाय तो कभी-कभी उल्टा भी हो जाता है; दूसरों का भला करने पर भी स्वयं का बुरा होता दिखाई देता है; पर ध्यान रहे भले काम का नतीजा तो भला ही होगा। अतः भला करने से पीछे न हटें।
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