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| केतुमति का पागलपन दूर होते ही वहाँ छिपे जरासंघ के गुप्तचरों ने सुनियोजित योजना के अनुसार वसुदेव ह | को पकड़ लिया और उन्हें राजगृह ले गये।
रास्ते में राजपुरुषों से वसुदेव ने पूछा - "मुझे किस अपराध मैं पकड़कर ले जाया जा रहा है?" तब उन्होंने बताया कि - राजा जरासंध को किसी - भविष्यवेत्ता द्वारा यह बताया गया है कि जो व्यक्ति केतुमती के पिशाच का निग्रह करेगा, वह राजा को घात करनेवाले शत्रु का पिता होगा। अत: 'न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी' यह सोचकर राजा की आज्ञा से आपको वधस्थान पर ले जाया जा रहा है।
परन्तु “किसी के सोचने से क्या होता है, होना तो कुछ और ही था" वसुदेव वधस्थान पर पहुँचे ही थे कि एक विद्याधर उन्हें झपटकर आकाश में ले गया और उस विद्याधर ने कुमार वसुदेव से कहा - मैं प्रभावती का पितामह हूँ। भागीरथ मेरा नाम है। मैं तुम्हारे मनोरथ पूर्ण करनेवाला हूँ। हे नीतिज्ञ ! मैं तुम्हें प्रभावती के पास ले चलता हूँ - ऐसा कहकर वे वसुदेव प्रभावती के पास ले गये और वहाँ दोनों का विवाह सम्पन्न हुआ। जिसकी आयु शेष हो और पुण्य का उदय हो, उसे दुनियाँ की बड़ी से बड़ी ताकत नष्ट एवं दुःखी नहीं कर सकती। इस घटना से हम निर्भय भी रह सकते हैं और पुण्य के कार्य करने की प्रेरणा भी पा सकते हैं, किन्तु हम अहंकार में इतने पागल हैं कि ऐसा विचार ही नहीं आता। अस्तु -
वसुदेव-प्रभावती पूर्व परिचित, स्नेह से एक-दूसरे के प्रति आकर्षित तो थे ही। अब वर-वधू बनकर दाम्पत्य जीवन के सुख में समर्पित हो गये।
पुण्य-पाप का कुछ ऐसा ही विचित्र स्वभाव है कि उनके उदय में जीव संयोग-वियोगों के झूले में इसीतरह झूलता हुआ संसार सागर में गोते खाता रहता है। यदि सदा के लिए परम अतीन्द्रिय आनन्द, निराबाध सुख प्राप्त करना हो तो हमें पुण्य-पाप से पार शुद्धोपयोगमय होना होगा तथा आत्मा के शुद्धस्वरूप को जानकर, उसमें ही रुचि और परिणति करनी होगी।
कुमार वसुदेव द्वारा अनेक विवाह किए गये, जिनमें कुछ प्रमुख विवाहों की कथा उल्लेखनीय हैं जो ||११