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________________ प्रदान कर दी गई। उसी समय नगरी में चारों ओर यह समाचार फैल गया कि सेठ कामदेव के लिए पुण्यशाली, प्रतापवंत अद्भुत जामाता मिल गया है। इस समाचार से प्रेरित होकर राजा ने, अन्तपुर की स्त्रियों ने और नगरवासियों ने वसुदेव को कौतूहल से देखा । राजपुत्री प्रियंगुसुन्दरी ने भी किसी तरह छिपकर वसुदेव को देख लिया। उन्हें देखते ही वह इतनी मोहित हो गई कि उन्हें पाये बिना उसका भोजन-पानी भी छूट | गया, उसे सभी कुछ राज के ठाट-बाट और सुख-साधन अरुचिकर लगने लगे। अतः उसने द्वारपाल द्वारा वसुदेव के पास यह संदेश भेजा कि आप राजपुत्री को स्वीकार करो, अन्यथा वह मृत्यु को प्राप्त हो जायेगी। वह आपके बिना जीवित नहीं रह सकती। वसुदेव पहले तो किंकर्तव्यविमूढ़ से हो गये, फिर थोड़ी देर बाद सोच विचार कर बोले - हे द्वारपाल! | तुम प्रियंगुसुन्दरी से कहो कि अभी कुछ दिन ठहरो। द्वारपाल वसुदेव का आश्वासन पाकर आशान्वित होकर प्रियंगुसुन्दरी ने ऐसा मान लिया, मानो मेरा मनोरथ पूर्ण हो गया है। एक दिन रात्रि में वसुदेव बन्धुमती के साथ शयन कर रहे थे कि - ज्वलनप्रभा नाम की दिव्य नागकन्या ने आकर उन्हें जगा दिया। उस दिव्य नागकन्या को देख वे विचार करने लगे कि यह कौन नारी यहाँ आयी है, जिसके शिर पर नाग का चिह्न है? वार्ता करने में निपुण उस नागकन्या ने कुमार को बाहर बुलाया विनयपूर्वक अशोक वाटिका में ले जाकर बोली - "हे धीर-वीर ! आप मेरा परिचय एवं मेरे यहाँ आने का कारण जानना चाहते हैं। सुनिये! । चन्दनवन नगर में एक अमोघदर्शन राजा था। उसकी चारुमती रानी थी। उनसे उत्पन्न चारुचन्द्र पुत्र था। उसी नगर में रंगसेना वैश्या की एक कामपताका पुत्री थी, जो सचमुच काम की पताका के समान अति सुन्दर थी। एक बार धर्म-अधर्म के विवेक से रहित राजा अमोघदर्शन ने यज्ञदीक्षा के लिए यज्ञोत्सव किया। उसमें कौशिक ऋषि भी आये थे। उस उत्सव में कामपताका वैश्यापुत्री ने अत्यन्त आकर्षक नृत्य किया, जिसे देख कौशिक ऋषि जैसे बड़े तपस्वी का मन भी विचलित हो गया, अन्य साधारण की तो बात ही क्या? यज्ञोपरान्त राजपुत्र चारुचन्द्र ने उस कन्या को अपना लिया; परन्तु कौशिक ऋषि भी उस कामपताका १० OF AV SEN FOR " +
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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