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मदनवेगा ने विद्याधर राजा त्रिशिखर द्वारा कैद किए गये पिता को बंधन से छुड़ाने का वर माँगा।
कुमार वसुदेव के पिछले जीवन के उतार-चढ़ाव एवं संघर्ष और उसमें सफलताओं का इतिहास तो हम | पिछले छः सर्गों में पढ़ते ही आ रहे हैं। इस सर्ग में भी पद्मावती, चारुहासनी, रत्नवती, सोमश्री, वेगवती |
और मदनवेगा से विवाह और मदनवेगा के भाई दधिमुख द्वारा अपने पिता को बन्धन से छुड़ाने के लिए जो वसुदेव से प्रार्थना की गई और वसुदेव ने तदनुसार मदनवेगा के पिता को छुड़ाने का जो उद्यम किया, इन सबका ज्ञान भी हुआ।
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यदि एक इन्जीनियर भूल करेगा तो कोई बड़ा अनर्थ होने वाला नहीं है, उसकी भूल से कुछ मकान, पुल या बांध ही ढहेंगे, एक डॉक्टर भूल करेगा तो भी कोई बड़ी हानि नहीं होगी, केवल थोड़े से बीमार ही परेशान होंगे, एक मैनेजर भूल करेगा तो कोई कलकारखाना या मिल ही घाटे में जायेगा और कोई सी.ए. भूल करेगा तो थोड़ा-बहुत हिसाब ही गड़बड़ाएगा; परन्तु यदि एक अध्यापक भूल करेगा तो पूरे राष्ट्र का ढांचा ही चरमरा जायेगा; क्योंकि अध्यापक भारत के भावी भाग्य-विधाताओं के चरित्र का निर्माता है, कोमलमति बालकों में नैतिकता के बीज बोनेवाला
और अहिंसक आचरण तथा सदाचार के संस्कार देनेवाला उनका गुरु है। अत: उसे न केवल प्रतिभाशाली, बल्कि सदाचारी और नैतिक भी होना चाहिए।
धर्म के क्षेत्र में तो यह नीति और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि एक धर्मोपदेशक के द्वारा, भय, आशा, स्नेह, लोभवश या अज्ञानता से मिथ्या उपदेश दिया गया तो मानव जीवन ही निरर्थक हो जायेगा, भव-भव बिगड़ जायेंगे।
- संस्कार, पृष्ठ-३१, आठवाँ संस्करण
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