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गुणस्थान विवेचन
५. अस्थिर श्रद्धावान सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव मुनिजीवन के योग्य संयम को अथवा व्रती श्रावक के योग्य संयमासंयम परिणाम को प्राप्त नहीं कर पाता।
६. तीर्थंकर नामकर्म की सत्ता जिस जीव को है, वे जीव इस तीसरे गुणस्थान में नहीं आते । तीर्थंकर प्रकृति की सत्तावाले जीव एक अंतर्मुहूर्त मात्र के लिये मिथ्यात्व गुणस्थान में तो जा सकते हैं; परन्तु तीसरे मिश्रसम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान में नहीं जाते।
धवला पुस्तक १ का अंश (पृष्ठ १६७ से १७१) सामान्य से सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव हैं ।।११।।
दृष्टि, श्रद्धा, रुचि और प्रत्यय ये पर्यायवाची नाम हैं। जिस जीव के समीचीन और मिथ्या दोनों प्रकार की दृष्टि होती है, उसको सम्यग्मिथ्यादृष्टि कहते हैं।
६. शंका - जिसतरह मिथ्यात्व के क्षयोपशम से सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान की उत्पत्ति बतलाई है; उसीप्रकार वह अनन्तानुबन्धी कर्म के सर्वघाती स्पर्धकों के क्षयोपशम से होता है - ऐसा क्यों नहीं कहा?
समाधान - नहीं; क्योंकि अनन्तानुबन्धी कषाय चारित्र का प्रतिबन्धक है, इसलिये यहाँ उसके क्षयोपशम से तृतीय गुणस्थान नहीं कहा गया है।
जो अनन्तानुबन्धी कर्म के क्षयोपशम से तीसरे गुणस्थान की उत्पत्ति मानते हैं, उनके मत से सासादन गुणस्थान को औदयिक मानना पड़ेगा। पर ऐसा नहीं है; क्योंकि दूसरे गुणस्थान को औदयिक नहीं माना गया है।
अथवा, सम्यक् प्रकृति कर्म के देशघाती स्पर्धकों का उदयक्षय होने से, सत्ता में स्थित उन्हीं देशघाती स्पर्धकों का उदयाभाव लक्षण उपशम होने से
और सम्यग्मिथ्यात्व कर्म के सर्वघाती स्पर्धकों के उदय होने से सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान उत्पन्न होता है; इसलिये वह क्षायोपशमिक है। यहाँ इसतरह जो सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान को क्षायोपशमिक कहा है, वह केवल सिद्धान्त
सम्यग्मिथ्यात्व (मिश्र) गुणस्थान के पाठ का प्रारम्भ करनेवालों के परिज्ञान कराने के लिये ही कहा है।
वास्तव में तो सम्यग्मिथ्यात्व कर्म निरन्वयरूप से आप्त, आगम और पदार्थ-विषयक श्रद्धा के नाश करने के प्रति असमर्थ हैं; किन्तु उसके उदय से सत्-समीचीन और असत्-असमीचीन पदार्थ को युगपत विषय करनेवाली श्रद्धा उत्पन्न होती है; इसलिये सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान क्षायोपशमिक कहा जाता है। ___ यदि इस गुणस्थान में सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से सत् और असत् पदार्थ को विषय करनेवाली मिश्र रुचिरूप क्षयोपशमता न मानी जावे तो उपशमसम्यग्दृष्टि के सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान को प्राप्त होने पर उस सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान में क्षयोपशमपना नहीं बन सकता है; क्योंकि उपशम सम्यक्त्व से तृतीय गुणस्थान में आये हुए जीव के ऐसी अवस्था में सम्यक्प्रकृति, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी इन तीनों का उदयाभावी क्षय नहीं पाया जाता है।
७. शंका - उपशम सम्यक्त्व से आये हुए जीव के तृतीय गुणस्थान में सम्यक् प्रकृति मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी इन तीनों का उदयाभावरूप उपशम तो पाया जाता है ?
समाधान - नहीं; क्योंकि इसतरह तो तीसरे गुणस्थान में औपशमिक भाव मानना पड़ेगा।
८. शंका - तो तीसरे गुणस्थान में औपशमिक भाव ही रहा आवे ?
समाधान - नहीं; क्योंकि तीसरे गुणस्थान में औपशमिक भाव का प्रतिपादन करनेवाला कोई आर्षवाक्य नहीं है। अर्थात् आगम में तीसरे गुणस्थान में औपशमिक भाव नहीं बताया है।
दूसरे, यदि तीसरे गुणस्थान में मिथ्यात्व आदि कर्मों के क्षयोपशम से क्षयोपशम भाव की उत्पत्ति मान ली जावे तो मिथ्यात्व गुणस्थान को भी क्षायोपशमिक मानना पड़ेगा; क्योंकि सादि मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा मिथ्यात्व