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________________ १०२ गुणस्थान विवेचन सूक्ष्मता से और वास्तविकपने देखा जाए तो सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान में चारित्र और ज्ञान - दोनों श्रद्धा के समान मिश्र अर्थात् सम्यक्मिथ्यारूप ही होते हैं। काल अपेक्षा विचार - कोई जीव इस सम्यग्मिथ्यात्व नामक तीसरे गुणस्थान में आयेगा तो वह अंतर्मुहूर्त काल पर्यंत रहेगा ही। जघन्य काल - सर्व लघु अंतर्मुहूर्त काल है। उत्कृष्ट काल - सर्वोत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त काल अर्थात् इस गुणस्थान के जघन्य काल से यह उत्कृष्ट काल संख्यात गुणा है। (धवला पु. ४, पृष्ठ ३४४-४५) गमनागमन अपेक्षा विचार - गमन - १. सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानवी जीव ऊपर के मात्र अविरतसम्यक्त्व गुणस्थान में ही गमन करता है; अन्य किसी भी ऊपर के गुणस्थानों में नहीं। २. यदि सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानवर्ती जीव निचले गुणस्थान में गमन करता है तो वह एक मात्र मिथ्यात्व गुणस्थान में ही गमन करता है। सासादन गुणस्थान में नहीं। आगमन - मिश्र गुणस्थान में सीधे आगमन के चार मार्ग हैं - १. प्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती भावलिंगी संत सीधे सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान में आ सकते हैं। २. पंचम गुणस्थानवर्ती व्रती श्रावक का सीधे तीसरे गुणस्थान में आगमन हो सकता है। ३. चौथे अविरत सम्यक्त्व से भी मिश्र गुणस्थान में आना संभव है। ये तीनों तीसरे गुणस्थान में आनेवाले औपशमिक अथवा क्षयोपशमिक सम्यग्दृष्टि ही होने चाहिए; क्योंकि क्षायिक सम्यग्दृष्टि तीसरे गुणस्थान में नहीं आते; कारण कि उनके पास सम्यग्मिथ्यात्व दर्शनमोहनीय कर्म की सत्ता ही नहीं है। सम्यग्मिथ्यात्व (मिश्र) गुणस्थान ४. सादि मिथ्यादृष्टि, जिनके सम्यग्मिथ्यात्व की सत्ता अर्थात् अस्तित्त्व हो और कदाचित् उदय भी आवे तो वे इस तीसरे गुणस्थान में आते हैं। विशेष अपेक्षा विचार - १. सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान में जीव का मरण नहीं होता । यह मिश्ररूप श्रद्धा का परिणाम ही खोटा है । सम्यग्दर्शन सहित मरण होता है। मिथ्यात्व परिणाम के साथ तो जीव अनादिकाल से मरता ही आया है। लेकिन श्रद्धा की मिश्र अवस्था में मरण नहीं करता अर्थात् यह मिश्र परिणाम मरण के लिये भी योग्य नहीं है। २. मिश्र गुणस्थान में मारणांतिक समुद्घात भी नहीं होता है। मरण के अंतर्मुहूर्त पूर्व नवीन पर्याय धारण करने के क्षेत्र पर्यंत आत्मप्रदेशों के तैजस-कार्माणरूप उत्तर शरीर के साथ बाहर निकलने को मारणांतिक समुद्घात कहते हैं। मारणांतिक समुद्घात करनेवाला जीव नवीन भव के क्षेत्र/स्थान को स्पर्श करके वापिस मूल शरीर में आ जाता है। जिन्होंने पर भव की आयु बांध ली हो, ऐसे जीवों के ही मारणांतिक समुद्घात हो सकता है; जिन्होंने परभव की आयु नहीं बांधी हो, उसे मारणांतिक समुद्घात नहीं होता है। जिसका अगले जन्म का क्षेत्र अर्थात स्थान ही निश्चित न हो, उसे मारणांतिक समघात कैसे होगा? एकेंद्रियादिक किसी भी बद्धायुष्क जीव को मारणांतिक समुद्घात हो सकता है, उसके लिये कुछ खास विशेषताओं की आवश्यकता नहीं है। ३. मिश्र श्रद्धावाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव जब तक इस तीसरे गुणस्थान में हैं, तब तक उन्हें अगले भव के आयु कर्म का बंध नहीं होता; क्योंकि मिश्र अवस्थारूप विपरीत भाव नये आयुकर्म के बंध के लिए अयोग्य हैं। ४. यदि तीसरे गुणस्थान में आने के पहले जीव ने मिथ्यात्व परिणाम के साथ आयुबंध किया हो तो मिथ्यात्व में जाकर मरण करता है और यदि तीसरे गुणस्थान में आने के पहले जीव ने सम्यक्त्व परिणाम के साथ आयुबंध किया हो तो वह जीव सम्यक्त्व में जाकर मरण करता है। (विशेष के लिए देखिए जीवकाण्ड गाथा २४ सम्यग्ज्ञान चंद्रिका ।)
SR No.008350
Book TitleGunsthan Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size649 KB
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