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गुणस्थान विवेचन परिणामों को कषाय कहते हैं। इन ही परिणामों के समय पूर्वबद्ध कर्मों का जो उदय निमित्त होता है, उसे ही कषाय कर्म कहते हैं।
• इन कषाय परिणामों के समय स्वयं कर्मरूप परिणमित नवीन कार्माणवर्गणाओं को कषाय कर्म कहते हैं।
४३. प्रश्न : नोकषाय कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर :नो = ईषत्, किंचित्, अल्प । किंचित् कषाय कर्म को नोकषाय कर्म कहते हैं।
४४. प्रश्न : अनंतानुबंधी कषाय कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : अनंत + अनुबंधी = अनंतानुबंधी। अनंत = संसार अर्थात् मिथ्यात्व परिणाम । अनु = साथ-साथ । बंधी = बंधनेवाली।
• मिथ्यात्व परिणाम के साथ-साथ बंधनेवाली कषाय को अनंतानुबंधी कषाय कर्म कहते हैं।
जो कषाय अनंत द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भावों से अनुबंध करे सम्बन्ध जोड़े, उसे अनन्तानुबन्धी कषाय कहते हैं। जैसे - अन्याय, अनीति व अविवेकपूर्वक राज्यविरुद्ध, लोकविरुद्ध व धर्मविरुद्ध अमर्यादितरूप से होनेवाले जीव के कषाय भाव।
• यह कषाय सम्यक्त्व और चारित्र दोनों के घात में निमित्त होती है। ४५. प्रश्न : अप्रत्याख्यानावरण कषाय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : अप्रत्याख्यान + आवरण = अप्रत्याख्यानावरण।
अ = किंचित्, ईषत् । प्रत्याख्यान - त्याग अर्थात् किंचित् त्याग अर्थात् देशचारित्र, संयमासंयम । द्रव्यव्रत अर्थात् बुद्धिपूर्वक शुभोपयोगरूप बाह्य व्रतों का ग्रहण । भावव्रत/चारित्र अर्थात् दो कषाय चौकड़ी के अभाव से व्यक्त होनेवाली वीतरागता । जैसे - न्याय, नीति व विवेकपूर्वक राज्यादि के अविरुद्ध मर्यादापूर्वक होनेवाले जीव के अकषायभाव ।
आवरण = ढकनेवाला। •जीव के देशसंयमरूप चारित्र परिणामों को आवृत्त करने अर्थात् ढकने में निमित्त होनेवाले कर्म को अप्रत्याख्यानावरण कषाय कर्म कहते हैं।
४६. प्रश्न : प्रत्याख्यानावरण कषाय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : प्रत्याख्यान + आवरण = प्रत्याख्यानावरण। प्रत्याख्यान = त्याग, महाव्रत, सकलसंयम, सकलचारित्र, संयम ।
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
द्रव्यव्रत अर्थात् बुद्धिपूर्वक शुभोपयोगरूप बाह्य महाव्रतों का ग्रहण । भावव्रत/चारित्र अर्थात् तीन कषाय चौकड़ी के अभाव से व्यक्त होनेवाली वीतरागता।
• जीव के सकलसंयमरूप चारित्र परिणामों को आवृत्त करने में अर्थात् ढ़कने में निमित्त होनेवाले कर्म को प्रत्याख्यानावरण कषाय कर्म कहते हैं।
४७. प्रश्न : संज्वलन कषाय कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : सम् + ज्वलन = संज्वलन, सम् = अच्छी रीति से । ज्वलन = प्रकाशित होना । जीव के सकलसंयम परिणामों के साथ जो अच्छी तरह से प्रकाशित होती है, रह सकती है। (नष्ट होती है, जलती है)
• जो संकलसंयम परिणामों के घात में निमित्त नहीं होती है; लेकिन सकलसंयम के साथ रहती है, उसे संज्वलन कषाय कहते हैं।
• जीव के यथाख्यातचारित्र परिणामों अर्थात् पूर्ण वीतराग भाव के घात में निमित्त होनेवाले कर्म को संज्वलन कषाय कर्म कहते हैं।
४८. प्रश्न : क्षयोपशम किसे कहते हैं ?
उत्तर : वर्तमानकालीन सर्वघाति स्पर्धकों का उदयाभावीक्षय, भविष्य में उदय में आनेयोग्य सर्वघाति स्पर्धकों का सदवस्थारूप उपशम और वर्तमानकालीन देशघाति स्पर्धकों का उदय, इन तीनरूप कर्म की अवस्था को क्षयोपशम कहते हैं।
४९. प्रश्न : उदयाभावीक्षय किसे कहते हैं ?
उत्तर : जब सर्वघाति स्पर्धकों का उदय होता है, तब आत्मा के गुण की तनिक भी अभिव्यक्ति नहीं होती; इसलिए उस उदय के अभाव को उदयाभावीक्षय कहते हैं।
• आत्मगुणों (पर्यायों) की किंचित् भी अभिव्यक्ति न होने में निमित्त होनेवाले सर्वघाति-स्पर्धकों के उदय के अभाव को उदयाभावीक्षय कहते हैं।
.सर्वघाति स्पर्धक अनंत गुणे हीन हो-होकर अर्थात् उदय के एक समय पूर्व देशघाति स्पर्धकों में परिणत होकर उदय में आते हैं। उन सर्वघाति स्पर्धकों का अनंतगुणहीनत्व ही क्षय कहलाता है। इसे ही स्तिबुक संक्रमण कहते हैं।
५०. प्रश्न : सदवस्थारूप उपशम किसे कहते हैं ? उत्तर : वर्तमान समय को छोड़कर आगामी काल में उदय आनेवाले