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चारित्रमोहनीय कर्म की २१ प्रकृतियाँ
चारित्रमोहनीय
कर्मों से रहित स्थान उपशांतमोह का काल
चारित्रमोहनीय कर्म की २१ प्रकृतियों अधः करणादि तीनों
करण परिणामों का काल
उप
रितन
स्थि
ति
मुनिराज क्रम से यहाँ
आते ही चारित्र
मोहनीय कर्म के
रहितपने के कारण
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क्षायिकचारित्र के समान निर्मलभावरूप औपशमिक स्तन चारित्र को प्राप्त - स्थि करते हैं।
अध
ति
औपशमिक चारित्र
ऊपर दिखाई गयी बड़ी रेखा चारित्रमोहनीय के २१ कर्मों की है। बीच में पोल अर्थात् खाली जगह चारित्रमोहनीय की २१ कर्मों से रहित दिखाई है। इस स्थान में भी पहले चारित्र मोहनीय की २१ कर्म प्रकृतियाँ थीं। जब से द्वितीयोपशमी या क्षायिकसम्यक्त्वी मुनिराज ने उपशमक अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में प्रवेश किया, तब से अर्थात् अनिवृत्ति के पहले समय से चारित्र मोहनीय २१ कर्मों के कुछ निषेक प्रतिसमय दीर्घ काल के बाद उदय आने योग्य उपरितन स्थिति में (सत्ता में पड़े हुये कर्मों में) जाते रहते हैं। कुछ निषेक अधस्तन स्थिति के कर्मों में जाकर मिल जाते हैं।
यह क्रम नववें गुणस्थान के अंतिम समय पर्यंत चलता रहता है। इतनी अवधि में (अंतमुहूर्त काल में ) चारित्रमोहनीय का उदय आते-आते अधस्तन स्थिति के कर्म उदय में आकर खिर जाते हैं और मुनिराज चारित्रमोहनीय कर्मों से रहित स्थान में पहुँचते हैं। और मुनिराजों को ग्यारहवाँ उपशांत मोह गुणस्थान प्राप्त होता है।
चारित्रमोहनीय कर्म के २१ भेद अप्रत्याख्यानावरण क्रोधादि ४. प्रत्याख्यानावरण क्रोधादि ४. संज्वलन क्रोधादि ४ और हास्यादि नौ नोकषाय,
४+४+४+९=२१ ।
गुणस्थानों से गमन
मिथ्या मारग चारि, तीनि चउ पाँच सात भनि । दुतिय एक मिथ्यात, तृतीय चौथा पहला गनि ।। १ ।। अव्रत मारग पाँच, तीनि दो एक सात पन । पंचम पंच सुसात, चार तिय दोय एक भन ।। २ ।। छट्टे षट् इक पंचम अधिक, सात आठ नव दस सुनो। तिय अध उरध चौथे मरन, ग्यारह बार बिन दो मुनो || ३ || - पण्डित द्यानतरायजी चरचा शतक, छन्द- ४४
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इस छन्द का हिन्दी में भावार्थ इसप्रकार है -
१. पहले गुणस्थान से ऊपर गमन के चार मार्ग हैं- तीसरे, चौथे, पाँचवें और सातवें में।
२. सासादन गुणस्थान से नीचे की ओर गमन का एक ही मार्ग है; पहले गुणस्थान में।
३. तीसरे मिश्र गुणस्थान से गमन के लिए कुल दो मार्ग हैं; ऊपर की ओर चौथे में तथा नीचे की ओर पहले में।
४. चौथे गुणस्थान से गमन के पाँच मार्ग हैं ऊपर की ओर पाँचवें और सातवें में और नीचे की ओर तीसरे, दूसरे और पहले में।
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५. पाँचवें गुणस्थान से भी पाँच मार्ग हैं ऊपर की ओर सातवें में तथा नीचे की ओर चौथे, तीसरे, दूसरे और पहले में।
६.
छठवें गुणस्थान से छह मार्ग हैं ऊपर की ओर सातवें में तथा नीचे की ओर पाँचवें, चौथे, तीसरे, दूसरे और पहले गुणस्थान में ।
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७. उपशम श्रेणी के सन्मुख सातवें से तीन मार्ग हैं ऊपर की ओर आठवें में गिरते समय नीचे की ओर छठवें में और मरण हो जाय तो विग्रह गति में चौथे में।
८. उपशम श्रेणीवाले आठवें से तीन मार्ग हैं- ऊपर की ओर नौवें में तथा नीचे की ओर सातवें में और मरण अपेक्षा चौथे में।
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९. उपशम श्रेणीवाले नौवें से तीन मार्ग हैं ऊपर की ओर दसवें में तथा नीचे की ओर आठवें में और मरण अपेक्षा चौथे में।
१०. उपशम श्रेणीवाले दसवें से तीन मार्ग हैं- ऊपर की ओर ग्यारहवें में तथा नीचे की ओर नौवें में और मरण अपेक्षा चौथे में ।
११. ग्यारहवें से दो ही मार्ग हैं
नीचे की ओर दसवें में और मरण अपेक्षा चौथे में।